नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी रूस और युक्रेन युद्ध के बीच केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि भारतीय नागरिकों को सुरक्षित स्वदेश लाने की बजाय आए दिन हमारा विदेश मंत्रालय परस्पर विरोधी एडवाइजरी जारी कर उनकी जान और भी जोखिम में डाल रहा है।
कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि सरकार की विफलता का एक और जीता जागता उदाहरण अपने नागरिकों के जानमाल की रक्षा करना किसी भी सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है।
आज ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बनी हुई है कि यूक्रेन में जहां दुनिया की तमाम सरकारें अपने नागरिकों की सुरक्षा को सबसे अधिक तरजीह दे रही हैं, वहीं विश्वगुरु बनने का दम्भ भरने वाली मोदी सरकार ने अपने 20,000 से अधिक नागरिकों, बच्चों और छात्रों को रॉकेटों, तोपों और मिसाइलों के बीच भगवान भरोसे छोड़ा हुआ है।
उनको वहां से सुरक्षित स्वदेश ले आना तो दूर की बात है, आए दिन हमारा विदेश मंत्रालय उनके बाबत परस्पर विरोधी एडवाइजरी (एक्सचर-1) जारी कर उनकी जान और भी जोखिम में डाल रहा है।
सुरजेवाला ने कहा कि आज स्थिति ये है कि बंकरों और भूमिगत मेट्रो स्टेशनों में शरण लिए हुए हमारे लोग जब मिशनों से सम्पर्क करना चाह रहे हैं तो ना कोई फोन उठाता है और ना ही कोई अधिकारी उनकी मदद के लिए उपलब्ध है।
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की संभावना के चलते ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका, फ्रांस जैसे विश्व के लगभग सभी देश अपने नागरिकों को जनवरी माह से ही न सिर्फ आगाह कर रहे थे, अपितु उन्हें वहां से निकाल भी रहे थे।
अमेरिका ने अपने नागरिकोंको 23 जनवरी को ही एडवाइजरी जारी कर कह दिया था कि रूस यूक्रेन पर बड़े मिल्रिटी एक्शन लेने वाला है।
इतना ही नहीं, अमेरिका ने 12 फरवरी (एक्सचर-3) को ही अपनी एडवाइजरी में यह व्यवस्था भी की कि जो भी अमेरिकी नागरिक रोड के रास्ते आना चाहते हैं, वे यूक्रेन के निकटवर्ती देश पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया, रोमानिया, माल्डोवा के रास्ते भी आ सकते हैं, जहां कोई एडवांस अप्रूवल की आवश्यकता नहीं होगी।
इसी प्रकार सभी देशों ने तत्परता से अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी की व्यवस्था की।
भारत ने अपनी पहली एडवाइजरी 15 फरवरी को जारी की जिसमें लिखा गया कि भारत के नागरिक और खासकर छात्र जिनका रहना वहां जरूरी नहीं है, वे यूक्रेन छोड़ दें।
साथ ही सभी से यह भी कहा गया कि वे यूक्रेन में कहां रह रहे हैं इसकी जानकारी भी एम्बेसी को दें जबकि बाकी के देश 1 माह पहले अपने नागरिकों की सारी जानकारी संग्रहित कर चुके थे।