Central Government upset by Supreme Court’s decision: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले से केंद्र सरकार परेशान है। इस फैसले में राज्यों को खनन और खनिज वाली जमीन पर TAX लगाने का अधिकार दिया गया है।
केंद्र की मोदी सरकार (Modi government) का कहना है कि इससे बहुत बड़ा आर्थिक बोझ पड़ेगा। केंद्र ने इस फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की है और कहा है कि इसमें कई खामियां हैं।
यह मामला 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच के फैसले से जुड़ा है। केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश को साथ लेकर इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है।
केंद्र का कहना है कि यह मामला देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा है। साथ ही यह जनहित का मुद्दा है और अगर इस पर सुनवाई नहीं हुई तो बड़ा अन्याय होगा।
वकील राकेश द्विवेदी कुछ खनिज संपन्न राज्यों की तरफ से पेश हुए। उन्होंने मांग की कि 9 जजों की बेंच के फैसले के बाद बकाया राशि से जुड़े मामलों को जल्द से जल्द एक नियमित बेंच के सामने सूचीबद्ध किया जाए ताकि राज्यों को जल्द से जल्द वित्तीय राहत मिल सके।
इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील A M Singhvi ने CJI DY Chandrachud की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि केंद्र और टाटा समूह की एक इकाई ने इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है।
राकेश द्विवेदी ने कहा कि केंद्र द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर करना इस बात का संकेत है कि पीएसयू जिन्हें दशकों से बिना रॉयल्टी या टैक्स दिए खनिजों के खनन से भारी फायदा हुआ है, अब न्यूनतम राशि भी नहीं देना चाहते हैं।
केंद्र और निजी कंपनियों ने अदालत से अनुरोध किया था कि राज्यों द्वारा खनिजों पर लगाया जाने वाला शुल्क भविष्य से लागू हो। इस पर 9 जजों की पीठ ने 14 अगस्त को साफ कर दिया था कि रॉयल्टी और खनिज वाली जमीन पर लगने वाले Tax का बकाया 2005 से अगले 12 सालों में किश्तों में राज्यों को दिया जाएगा। यह भी साफ कर दिया कि बकाया राशि पर ब्याज नहीं लगेगा।
दिया जा रहा तर्क, आर्थिक बोझ पड़ेगा, कई पीएसयू और उद्योग हो सकते हैं बर्बाद
बिना ब्याज के, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) पर वित्तीय बोझ करीब 70 हजार करोड़ रुपए होने का अनुमान है। निजी क्षेत्र के उद्योगों से 2005 से बकाया राशि को भी इसमें शामिल किया जाए तो यह आंकड़ा बढ़कर 1.5 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा। इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदा खनिज संपन्न राज्यों झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और राजस्थान को होगा।
केंद्र सरकार ने नौ जजों की पीठ के फैसले को भविष्य से लागू करने की मांग करते हुए कहा था कि अगर इसे पूरी तरह से लागू किया जाता है तो इससे बहुत बड़ा आर्थिक बोझ पड़ेगा, जिससे कई पीएसयू और उद्योग बर्बाद हो सकते हैं। साथ ही, इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान होगा और करीब सभी उत्पादों की कीमतें बढ़ जाएंगी।