चाईबासा : बहुत सी सुहागिन महिलाओं ने आज यानी शुक्रवार को भी जितिया का पर्व (Jitiya Festival ) किया है। निर्जला उपवास रखा है।
बहुत सी महिलाएं आज जीमूतवाहन (Jimutvahan) की पूजा कर कल यानी शनिवार को निर्जला उपवास रखेंगी। संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं यह उपवास रखती हैं।
बाजार में उत्साह का माहौल
बताया जाता है कि चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के लगभग हर गांव में मनाई जाने वाली जितिया, जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत प्रकृति से जुड़ा लोक परंपरा का उत्सव है। पूजा को लेकर अनुमंडल क्षेत्र के चारों ओर उत्साह का माहौल है। सुबह से ही बाजार में खरीदारी के लिए लोग उमड़ रहे हैं।
चील और सियारिन की भी पूजा
नियमानुसार आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक मनाए जाने वाले जिउतिया पूजा के दौरान सुहागिन महिलाएं भगवान जीमूतवाहन के साथ चील और सियारिन (Eagle and Porcupine) की भी पूजा करेंगी।
गोबर और मिट्टी से सियारिन व चील की मूर्ति पर पूजा-अर्चना के दौरान चूड़ा-दही का प्रसाद चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि कुश का जीमूतवाहन बनाकर पानी में उसे डाल बांस के पत्ते, चंदन, फूल आदि से पूजा करने पर वंश की वृद्धि होती है।
पारण के दौरान व्रती महिलाएं पवित्र तालाब या अन्य जलाशयों में जीमूतवाहन राजा के प्रतिक स्वरूप गाड़े गए डाली के साथ मिट्टी व गोबर से बनी चील व सियारिन की प्रतिमा का विसर्जन करती हैं।
पारंपरिक रूप से इस कथा की महिमा
जिउतिया पूजा पर एक कथा राजा जीमुतवाहन की भी कही जाती है। कथा के अनुसार गंधर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें विलाप करती हुई नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है।
नागवंश की रक्षा करने के लिए नागों ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार (Mass Hunting) नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है।
इस तरह नागों को न खाने का दिया वचन
नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ान भरी।
जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर देखा तो कपड़े में लिपटा जीमूतवाहन को पाया।
जीमूतवाहन (jimutvahan) ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया। तब से हर माता अपने पुत्र की रक्षा के लिए जिउतिया व्रत करने लगी।