How Chandrayaan-3 Became Successful: इस वक़्त चंद्रयान-3 मिशन (Chandrayaan-3 Mission) के सफल होने से सभी भारतीय काफी खुश हैं।
और इससे भी ज्यादा ख़ुशी उन्हें तब होगी जब उन्हें ये पता चलेगा की ये मिशन काफी कम खर्च में सफल हो पाया है। बता दें कि रूस का Luna-25 मून मिशन करीब 1650 करोड़ रुपए का था।
Chandrayaan-3 के करीब एक महीने बाद लॉन्च हुआ। ISRO का चंद्रयान-3 मात्र 615 करोड़ रुपए में तैयार हुआ। और सफलता प्राप्त की। अब सभी इस बात से ताजुब हैं कि आखिर इतना सस्ता होने के बावजूद कामयाब होने की क्या वजह है।
चंद्रयान-3 के सफल होने की वजह
अगर आप ये सवाल इसरो प्रमुख एस सोमनाथ या अन्य वैज्ञानिकों से पूछेंगे तो वो कहेंगे ये सीक्रेट है।
लेकिन जो तीन-चार वजहें सामने आ रही हैं, उनमें पहला है स्वदेशीकरण, सरलता और सस्ता मैनपावर। स्वदेशीकरण यानी लैंडर-रोवर (Lander Rover) या फिर रॉकेट हो। सबकुछ स्वदेशी। सारे पेलोड्स स्वदेशी (Payloads Indigenous) हैं।
भारत को सबसे बड़ा फायदा सेविंग के मामले में Rocket से हुआ। रूस ने अपने रॉकेट को हैवी और ताकतवर बनाने के लिए एक्स्ट्रा बूस्टर (Xtra Booster) लगाया था।
ताकि ज्यादा गति मिले। Luna-25 को सीधे ट्रांस-लूनर ट्रैजेक्टरी (Trans-Lunar Trajectory) में डाला जा सके। लेकिन भारत के चंद्रयान-3 ने ऐसा कुछ नहीं किया।
उसने करीब 41 दिन की यात्रा की। पांच बार धरती के चारों तरफ पांच बार चंद्रमा के चारों तरफ। फिर बीच में लंबा हाइवे।
ISRO ने दिखाई सरलता
पूर्व इसरो चीफ डॉ। के राधाकृष्णनन ने बताया कि इसरो की अपनी एक मॉड्यूलर फिलॉस्फी है। वह पुरानी तकनीकों को अपग्रेड करके उसे नई तकनीकों में बदल देता है।
हम ऐसे जुगाड़ कई बार करते हैं। यही है सस्ते मिशन की दूसरी वजह। यानी ISRO की सरलता।
आप देखो की GSLV, LVM और PSLV रॉकेट्स में कई चीजें Common हैं। हमने सैटेलाइट बस (Satellite Bus) भी में कई चीजें Common रखी थीं। इन सभी चीजों से कीमत कम हो जाती है।
सस्ता मैनपावर भी है सफलता का कारण
पूर्व ISRO Chief के। सिवन ने कहा भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि वह अमेरिका, यूरोप, रूस से मैनपावर के मामले में सस्ता है। यही तीसरी बड़ी वजह है।
भारत में बाकी बड़े देशों की तुलना में मैनपावर की लागत 10 फीसदी है। इसका मतलब ये नहीं कि हमारे वैज्ञानिक या इंजीनियर (Scientist or Engineer) कमजोर हैं। वो बाकी देशों के वैज्ञानिकों से ज्यादा समझदार हैं।
जब भी बात टेस्टिंग की आती है, तब इसरो की टीम बेहद तटस्थ रहती है। हम Test से पहले भयानक लेवल पर रिस्क एनालिसिस (Risk Analysis) करते हैं।
हम Best Three खोजते हैं। जबकि बाकी देशों में ये टेस्ट दर्जनों बार करते हैं। इस बार लैंडर के सैकड़ों बार टेस्ट किए गए थे।
90 % पार्ट्स स्वदेशी
डेवलपमेंट संबंधी कीमत (Development Cost) कम हो जाती है। इससे रॉकेट और सैटेलाइट की कीमत कम हो जाती है। अगर आप इसरो के Rockets की बात करें तो वह 90 फीसदी स्वदेशी हैं।
सिर्फ कुछ इलेक्ट्रॉनिक मटेरियल (Electronic Material) ही इम्पोर्ट किये जाते हैं। भारत में ज्यादातर चीजें घर में बनाई जाती हैं।
यानी अपने ही देश में। इसलिए उनकी कीमत कम हो जाती है। हम बाहरी कंपनी से खरीद-फरोख्त (Negotiate) बेहद कम करते हैं।