नई दिल्ली: पैन्गोंग झील के दोनों किनारों को लेकर हुए समझौते के दो दिन के भीतर ही चीन ने दक्षिण तट पर तैनात 200 से अधिक मुख्य युद्धक टैंकों को वापस ले लिया है।
इसी तरह उत्तरी तट के फिंगर एरिया से भी कम से कम 100 भारी वाहनों को पीछे किया गया है। भारत के साथ तीन दिन के भीतर बख्तरबंद टैंकों को पीछे हटाने का समझौता हुआ था लेकिन चीनी सेना ने दो दिनों में जिस तेजी के साथ अपने टैंक हटाए हैं उसने भारतीय सेना के शीर्ष अधिकारियों और राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों को चौंका दिया है।
पैन्गोंग झील के बाद भारत की अगली नजर डेप्सांग प्लेन्स पर है जहां चीन ने टैंकों की तैनाती करके मोर्चाबंदी कर रखी है।
भारत और चीन के बीच विवाद का मुख्य मुद्दा बनी पैन्गोंग झील करीब 134 किलोमीटर लंबी है। समुद्री तल से 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित झील का दो तिहाई हिस्सा चीन के पास है, जबकि करीब 45 किलोमीटर का हिस्सा भारत के पास है।
भारत और चीन के बीच हुए गोपनीय समझौते के बाद बुधवार को सुबह 9 बजे से चीन ने पैन्गोंग झील से पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
चीनी रक्षा मंत्रालय ने बाकायदा बयान जारी करके इसकी घोषणा भी की लेकिन भारत की ओर से इस बारे में अधिकृत जानकारी दूसरे दिन (गुरुवार) रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में बयान देकर दी। गुरुवार शाम को ही लद्दाख सीमा से सेनाओं के पीछे हटने की तस्वीरें भी सामने आ गईं।
दो दिन के भीतर ही चीन ने दक्षिण तट पर तैनात 200 से अधिक मुख्य युद्धक टैंकों को वापस ले लिया है। चीन ने फिंगर एरिया से भी कम से कम 100 भारी वाहन पीछे किये हैं।
सूत्रों के मुताबिक बीजिंग से यह समझौता विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और चीन के अपने-अपने समकक्ष के साथ कई दौर की बैक-चैनल वार्ताओं के बाद हुआ।
इसका परिणाम यह हुआ कि भारत पूर्वी लद्दाख में अपनी स्थिति पर कायम रहा और ’न कोई जीता, न कोई हारा’ की तर्ज पर चीन से पीछे हटने की प्रक्रिया पहले शुरू करने के लिए कहा गया।
भारत सैन्य वार्ताओं में भी यह बात कई बार साफ कर चुका था कि चीन पहले आगे आया है तो पीछे हटने की शुरुआत भी उसे ही करनी होगी।
सूत्रों का कहना है कि भारतीय पक्ष ने भी अपने टैंक व हथियार वापस लिए हैं लेकिन चीन से मिले पिछले अनुभवों को देखते हुए पूरी तरह सतर्कता बरतते हुए सबसे खराब स्थिति में आकस्मिक योजनाएं तैयार भी हैं। चीनी और भारतीय सेनाओं को शनिवार की रात तक इस समझौते को पूरा करना है।
चीन से अगली समझौता वार्ता डेप्सांग प्लेन्स पर
रक्षा मंत्री ने सदन में दिए बयान में यह भी कहा है कि पैन्गोंग झील के उत्तरी और दक्षिण किनारों पर पूरी तरह डिसइंगेजमेंट होने के बाद बाकी विवादित इलाकों पर भी चीन से बातचीत की जाएगी।
इसलिए भारत की अगली नजर डेप्सांग प्लेन्स पर है जहां चीन ने टैंकों और दो ब्रिगेड की तैनाती करके मोर्चाबंदी कर रखी है।
पैन्गोंग झील के दक्षिणी किनारे पर 29/30 अगस्त को भारत से मुंह की खाने के बाद चीन ने डेप्सांग प्लेन्स में अपनी तैनाती बढ़ाई थी जिसके जवाब में भारत ने भी इस इलाके में अतिरिक्त टुकड़ी, हथियार, गोला-बारूद की तैनाती की है।
चीन ने यहां पिछले साल अप्रैल से पेट्रोलिंग पॉइंट-10 से 13 तक भारतीय सैनिकों के ब्लॉक कर रखे हैं। यह वही एरिया है जहां चीन की सेना ने 2013 में भी घुसपैठ की थी और दोनों देशों की सेनाएं 25 दिनों तक आमने-सामने रही थींं।
डेप्सांग प्लेन्स सामरिक तौर पर इसलिए अहम है क्योंकि इसी के पास ही दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी है जिसे भारतीय वायुसेना ने बनाया है।
डेप्सांग से भारत-चीन सीमा का सामरिक दर्रा काराकोरम भी करीब 30 किलोमीटर दूर है। यहां से चीन के कब्जे वाला अक्साई चिन क्षेत्र लगभग 7 किलोमीटर दूर है।
डेप्सांग का रास्ता काराकोरम पास और दौलत बेग ओल्डी को जाता है। इसके अलावा हॉट स्प्रिंग एरिया और गोगरा पोस्ट यानी पीपी 15 और पीपी 17 के पास भी चीनी सैनिक डटे हैं। यहां भी डिसइंगजमेंट की बात होनी है।
गलवान घाटी के हिंसक संघर्ष के बाद 30 जून को हुई बातचीत के बाद गलवान में पीपी-14 से भारत और चीन के सैनिक डेढ़ से दो किलोमीटर पीछे हो गए थे और यहां एक बफर जोन बनाया गया है।