CJI DY Chandrachud Will Retire tomorrow : कल यानी 11 नवंबर 2024 को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया DY Chandrachud रिटायर होंगे। इसके ठीक पहले उन्होंने बुलडोजर जस्टिस पर अपना अंतिम फैसला सुनाया।
DY Chandrachud ने 9 नवंबर 2022 को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला था। 11 दिसंबर को उनके बाद 51वें चीफ जस्टिस के रूप में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना उनके उत्तराधिकारी के रूप में CJI का पदभार ग्रहण करेंगे।
बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ दिया निर्णय
बुलडोजर जस्टिस पर 6 नवंबर को Supreme Court की उस पीठ ने फैसला सुनाया, जिसकी अध्यक्षता CJI चंद्रचूड ने की थी। इसमें न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
यह मामला 2019 में पत्रकार Manoj Tibrewal आकाश के पुश्तैनी घर को तोड़ने से जुड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इसके लिए सिर्फ एक सार्वजनिक घोषणा मुहूर्त (ड्रम की आवाज) के जरिए की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया को कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन माना। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राज्य सरकार को इस मामले में याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया। साथ ही अवैध ध्वस्तीकरण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आदेश दिया।
बिना नोटिस घर गिरना अस्वीकार्य
अपने फैसले में CJI चंद्रचूड ने बुलडोजर न्याय को पूरी तरह से अस्वीकार्य करार दिया। उन्होंने कहा, बुलडोजर न्याय संविधान के तहत संपत्ति के अधिकार (धारा 300A) को मृत पत्र में बदलने जैसा है।
यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है। उन्होंने आगे कहा, बुलडोजर के माध्यम से न्याय किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था में स्वीकार्य नहीं है। यदि इसे अनुमति दी जाती है तो राज्य के किसी भी अधिकारी या विभाग द्वारा नागरिकों की संपत्ति का ध्वस्तीकरण एक अनुचित प्रतिशोध का रूप ले सकता है।
अधिकारियों की सार्वजनिक जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी कहा, अधिकारियों के लिए सार्वजनिक जिम्मेदारी को मानक होना चाहिए। जिन अधिकारियों ने इस तरह की अवैध कार्रवाई की या उसे मंजूरी दी है उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए और उनके द्वारा किए गए कानून उल्लंघनों को आपराधिक दंड (Criminal Punishment) का सामना करना चाहिए।
उन्होंने न्यायिक स्वतंत्रता, नागरिक अधिकारों की रक्षा और संविधान की भावना को बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए। उनका अंतिम आदेश इस बात का प्रतीक है कि वे हमेशा कानूनी प्रक्रियाओं और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर रहे हैं।