नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना ने कहा है, ‘कई बार लोग घटनास्थल पर जो देखते हैं, उस बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बात करते हैं।
जिससे इस संभावना से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी मामले में तिल का ताड़ बना दिया जाए।
मगर इस प्राथमिक सिद्धांत को झुठलाया नहीं जा सकता कि तिल का ताड़ बनाने के लिए कुछ तो होना चाहिए।
उन्होंने अदालतों को नसीहत देते हुए कहा, ‘सत्य की पहचान करना उतना ही कठिन होता है, जितना भूसे के ढेर से अनाज के दाने निकालना। मगर जजों को भूसे के ढेर से अनाज के दाने की तरह सच को निकालना पड़ता है।
अनाज और भूसे में इतना तो अंतर होता ही है कि इन्हें अलग किया जा सके।
सीजेआई ने यह टिप्पणी हत्या के करीब 25 साल पुराने मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए की।
कोर्ट ने दो दोषियों को राहत देने से भी इनकार कर दिया।
अभियुक्तों ने दलील दी थी कि गवाहों ने घटना के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बयान दिया है। जबकि ऐसा हुआ ही नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने इस पर कहा, ‘भले ही गवाहों ने अपने बयानों में घटना का बखान बढ़ा-चढ़ा कर किया हो।
मगर घटना हुई थी और उसमें दोषियों की संलिप्तता थी।