नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट को निर्देश दिया है कि वे कलर ब्लाइंड अभ्यर्थियों को भी फिल्म निर्माण से जुड़े पाठ्यक्रम में हिस्सा लेने की अनुमति दें।
जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि फ़िल्म निर्माण एक कला है।
अगर कलर ब्लाइंडनेस के चलते किसी को कुछ समस्या आती है, तो वह दूसरे व्यक्ति से सहयोग ले सकता है, उन्हें पूरी तरह से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
यह याचिका पटना के 35 वर्षीय आशुतोष कुमार ने दायर की है। आशुतोष कुमार का चयन फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में फिल्म एडिटिंग कोर्स के लिए किया गया था।
लोगों को एमबीबीएस में दाखिला देने के लिए कहा गया था
मेडिकल जांच में कलर ब्लाइंड पाए जाने के बाद उन्हें इंस्टीट्यूट ने दाखिला देने से इनकार कर दिया था। इंस्टीट्यूट के इस फैसले को आशुतोष कुमार ने बांबे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने इंस्टीट्यूट के निर्णय को नियम मुताबिक बताते हुए याचिका खारिज कर दी। बांबे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुनवाई के दौरान आशुतोष कुमार की ओर से वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा कि फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट अपने 12 में से 6 कोर्सेस में कलर ब्लाइंड लोगों को प्रवेश नहीं देता जो भेदभाव है।
उन्होंने 2016 और 2017 के उन आदेशों को जजों के सामने रखा जिसमें कलर ब्लाइंड और कम दिखने वाले लोगों को एमबीबीएस में दाखिला देने के लिए कहा गया था।