रांची: झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव, कृषि मंत्री बादल पत्रलेख, सांसद धीरज प्रसाद साहू, विधायक राजेश कच्छप, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय सहित अन्य नेताओं ने रविवार को खूंटी जिले के टकरा गांव स्थित जयपाल सिंह मुंडा के समाधि स्थल पर माल्यार्पण कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किया।
इस दौरान सबसे पहले लोटा पानी से समाधि स्थल को धोया गया एवं पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई।
महान दूरदर्शी, विद्वान नेता, सामाजिक न्याय के आरंभिक नेताओं में से एक, संविधान सभा के सदस्य और हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा की जयंती समारोह पर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उनके पैतृक गांव पहुंचे और समाधि स्थल पर माल्यार्पण कर उनके दिखाये रास्ते पर चलने का संकल्प लिया।
मौके पर रामेश्वर उरांव ने कहा कि मरांग गोमके पूरे समाज के लिए आदर्श है।
उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद 1928 में राजनीति में पहला कदम रखा और बाद में 1938 में आदिवासी महासभा का गठन गठन किया।
पहली बार जनजातीय बहुल्य इलाकों के लिए झारखंड राज्य का उल्लेख किया। 1952 में आजादी के बाद पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में वे नेता प्रतिपक्ष बने और उनके द्वारा ही पहली बार अलग झारखंड राज्य की परिकल्पना की।
उन्हीं की तरह दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने भी अलग झारखंड राज्य गठन को लेकर लंबे समय तक संघर्ष किया।
रामेश्वर उराँव ने कहा कि 17 वर्षों की सरकार ने मारंग गोमके का एक स्मारक तक नहीं बना पाई।
हमारी सरकार उनके परिजनों व ग्रामीणों से बात करके जयपालसिंह के सपनों को साकार करेगी।
कृषिमंत्री बादल ने कहा कि राज्य सरकार और उनका विभाग मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के सपने को साकार करने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है।
किसानों की स्थिति कैसे सुदृढ़ हो, इसके लिए विभाग की ओर से आवश्यक कदम उठाये गये है।
वहीं किसानों का कृषि ऋण माफ करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है।
सांसद धीरज प्रसाद साहू ने कहा कि आजाद भारत का गणतंत्र स्वरूप सुनिश्चित करने वाली सभा को सचेत करते हुए जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था आदिवासी इस दुनिया के सबसे गण तांत्रिक लोग हैं।
इसलिए उन्हें लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने की जगह उनसे लोकतांत्रिक विचार व्यवहार सीखना चाहिए। जयपाल सिंह झारखंड की नहीं पूरे भारतवर्ष के आदिवासियों के मसीहा माने जाते हैं।
सुबोधकांत सहाय ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा के प्रयास से ही ट्राइबल सबप्लान को अमलीजामा पहनाया जा सका।
राष्ट्रव्यापी सोच और उनकी दूरदर्शिता से जयपाल सिंह ने अलग झारखंड राज्य गठन की परिकल्पना की।
लेकिन अलग झारखंड राज्य गठन के 20 में से 17 वर्षां तक भाजपा सत्ता में रही, उनके सपनों को पूरा करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया। इसलिए उनका गांव और पूरा राज्य निरंतर पिछड़ता चला गया।
प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे, लाल किशोरनाथ शाहदेव और राजेश गुप्ता ने केंद्र और राज्य सरकार से यह आग्रह किया कि स्कूली पाठ्यक्रम में जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी को भी शामिल किया जाए, ताकि नयी पीढ़ी को उनके संघर्षां और अलग झारखंड राज्य की लड़ाई के बारे में सही और पूरी जानकारी मिल पाए।
आदिवासी परिवार में तीन जनवरी 1903 को खूंटी के तपकरा टकरा गांव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और उसी दौरान विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा दिखाकर लोगों को चमत्कृत करना शुरू कर दिया गया। बाद में उन्हें भारतीय हॉकी टीम की ओलंपिक में कप्तानी सौंपी गयी थी।
जयपाल सिंह ने आदिवासियों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।
मरांग गोमके यानी ग्रेट लीडर के नाम से लोकप्रिय हुए जयपाल सिंह मुंडा ने 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन कर आदिवासियों के शोषण के विरूद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ने का निश्चय किया।