नई दिल्ली: किसान आंदोलन और राजधानी की ओर आने वाले राजमार्गों के अवरोध के बारे में उच्चतम न्यायालय की पहल किसान आंदोलन से जुड़े कुछ नेताओं और बुद्धिजीवियों को नागवार गुजरी है।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने उच्चतम न्यायालय की पहल को मोदी सरकार को बचाने की पहल बताया है।
उल्लेखनीय है कि राजमार्गों पर अवरोध हटाने संबंधी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने गतिरोध का समाधान खोजने के लिए एक समिति के गठन का सुझाव दिया है।
इसमें देशभर से किसान प्रतिनिधि, सरकारी प्रतिनिधी तथा अन्य पक्षकार शामिल होंगे।
प्रशांत भूषण ने एक ट्वीट में कहा कि उच्चतम न्यायालय समिति के गठन के जरिए किसानों के विरोध के संबंध में सरकार की मदद करना चाहता है।
उन्होंने कहा कि पिछले दिनों जब लॉकडाउऩ के कारण मजदूरों का पलायन हुआ था तो न्यायालय ने पूरा मामला सरकार के पाले में डाल दिया था।
उन्होंने याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा जिरह करने के प्रस्ताव पर भी आश्चर्य व्यक्त किया।
किसान आंदोलन से जुड़े एक नेता स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने कहा कि उच्चतम न्यायालय इस बात का फैसला नहीं कर सकता की नए कृषि कानून किसानों के पक्ष में हैं या नहीं।
उन्होंने कहा कि न्यायालय यह फैसला कर सकता है कि नए कानून संवैधानिक हैं या नहीं। लेकिन इन कानूनों से किसानों का हित होगा या नहीं, यह कानूनी मामला नहीं है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समस्या का समाधान किसानों और उनके जनप्रतिनिधियों को ही सुलझाना होगा।
समझौता करवाना न्यायालय का काम नहीं है। यादव ने कहा कि इस प्रकरण में समिति गठित करने के सरकारी प्रस्ताव को किसान संगठन पहले ही खारिज कर चुके हैं।