नई दिल्ली: दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माताओं में से एक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के कार्यकारी निदेशक, सुरेश जाधव के अनुसार, नोवल कोरोनावायरस के खिलाफ कोविशिल्ड के अलावा चार और वैक्सीन पर काम किया जा रहा है।
जाधव ने एक वेबिनार के दौरान बताया कि फर्म नोवल कोरोनावायरस के खिलाफ पांच वैक्सीन पर काम कर रही है, जिसमें कोविशिल्ड भी शामिल है।
गौरतलब है कि इसे आपातकालीन उपयोग रोल-आउट के लिए मंजूरी मिलने के बाद शनिवार को बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान शुरू किया गया।
उन्होंने कहा, एक (वैक्सीन) के लिए हमें आपातकालीन स्वीकृति मिल गई है, तीन अन्य क्लिनिकल अध्ययन के विभिन्न चरणों में हैं, जबकि एक ट्रायल के प्रीक्लिनिकल चरण में है।
एसआईआई ने भारत और अन्य देशों के लिए अपने संभावित कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण के लिए नोवावैक्स इंक के साथ साझेदारी की है।
अमेरिकी ड्रग डेवलपर के साथ एक समझौते के तहत पुणे स्थित ड्रगमेकर नोवावैक्स के वैक्सीन उम्मीदवार की सालाना दो सौ करोड़ खुराकें विकसित करेगा।
दवा निर्माता वैक्सीन के एंटीजन घटक का भी निर्माण करेगा।
एसआईआई ने अपने कोरोनावायरस वैक्सीन के निर्माण और आपूर्ति के लिए यूएस आधारित कोडेजेनिक्स के साथ भागीदारी की है।
फर्म का पहला कोविड वैक्सीन एस्ट्राजेनेका / ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मास्टरसीड से विकसित किया गया है।
भारत बायोटेक के कोवैक्सिन के साथ इसे भी आपातकालीन उपयोग ऑथराइजेशन के लिए इसे 3 जनवरी को भारत के ड्रग नियामक द्वारा स्वीकृति दी गई थी।
हालांकि, दोनों दवा निर्माताओं को उनके क्लिनिकल ट्रायल में कम पारदर्शी डेटा और दवा लाइसेंसिंग की उचित प्रक्रिया को पूरा किए बिना स्वीकृति प्राप्त करने के लिए आलोचना की जा रही है।
इन आलोचनाओं पर टिप्पणी करते हुए जाधव ने कहा कि ऐसा पहले भी किया जा चुका है।
जाधव ने कहा, यह पहली बार नहीं है जब मानवता पर दांव लगाया गया है।
अफ्रीका में चार साल पहले इबोला का प्रकोप जब हुआ था और एक कनाडाई फार्मास्युटिकल फर्म द्वारा इसका वैक्सीन जो सिर्फ पहले चरण को पूरा कर चुका था और दूसरे चरण के ट्रायल से गुजर रहा था, तभी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने उसको मंजूरी दी थी।
लिया गया जोखिम रंग लाया और वैक्सीन ने इबोला को नियंत्रित करने में मदद की।
उन्होंने आगे कहा, साल 2009 में जब एच1एन1 महामारी फ्लू हुआ, तो हमें क्लिनिकल परीक्षणों के सभी चरणों को पूरा करने के बाद इसके विकास के लिए और वैक्सीन लगाने के लिए 1.5 साल लग गए, लेकिन पश्चिम में दवा निर्माताओं ने ऐसे उत्पादों की मार्केटिंग सात महीने से भी कम समय में की।
तब किसी ने उनसे सवाल नहीं किया। फिर अब ये अचानक शोरगुल क्यों?