नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड के भाव सात साल के उच्चतम स्तर से नीचे आ गये लेकिन अभी भी 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है, यह भारत की मुद्रास्फीति एवं चालू खाता घाटे के लिए चुनौतीपूर्ण है।
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद गुरुवार को ब्रेंट क्रूड 105 डॉलर प्रति बैरल को भी पार कर गया था। इस तनावपूर्ण स्थिति के बावजूद तेल की आपूर्ति पर कोई खतरा नहीं पड़ने की संभावना से शुक्रवार को इसके भाव में नरमी देखी गई।
शुक्रवार को कारोबार के दौरान ब्रेंट क्रूड 101 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर दर्ज किया गया। एक तेल कारोबारी ने कहा कि मौजूदा हालात में तेल कीमतों पर जोखिम से जुड़ा 10-15 डॉलर प्रति बैरल का प्रीमियम है।
उद्योग सूत्रों ने कहा कि पेट्रोल एवं डीजल की खुदरा कीमतों और इन पर आने वाली लागत में करीब 10 रुपए का फासला है और चुनावों के बाद तेल कीमतों में वृद्धि से मुद्रास्फीति दर पर दबाव देखा जाएगा।
मुद्रास्फीति पहले ही आरबीआई के छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर चल रही है। इसके अलावा अपनी तेल जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात से पूरा करने वाले भारत के चालू खाता घाटे पर भी ऊंची तेल कीमतों की मार पड़ेगी।
इसकी वजह यह है कि देश को कच्चे तेल की बढ़ी हुई दरों पर भुगतान करना होगा और उसका आयात बिल बढ़ जाएगा। मॉर्गन स्टैनली ने कहा कि तेल कीमतों में वृद्धि दुनिया के तीसरे बड़े तेल आयातक भारत के नजरिये से नकारात्मक है।
ग्रेट ईस्टर्न एनर्जी कॉर्प लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हाइड्रोकार्बन की उपलब्धता वैश्विक स्तर पर एक बड़ी समस्या बन सकती है। उन्होंने कहा कि यह संकट घरेलू स्तर पर तेल एवं गैस उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत को फिर से रेखांकित करता है।
एक अन्य कारोबारी ने कहा कि कोविड महामारी के संकट से उबरने में जुटी विश्व अर्थव्यवस्था के सामने अब यूक्रेन संकट के रूप में नई चुनौती आ गई है। इस संकट के लंबा खिंचने की स्थिति में कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर ही टिका रह सकता है।