समलैंगिक विवाह पर कोर्ट में छिड़ी बहस, देशभर में चर्चा का बना मुद्दा

शांता कुमार ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की इस टिप्पणी पर केन्द्र सरकार (Central Government) की ओर से तर्क दिया जाना चाहिए कि यदि पुरुष का पुरुष से और महिला का महिला से भावनात्मक सम्बंध है तो वे जीवन भर साथ रहें

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नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) में समलैंगिक विवाह (Gay Marriage) को लेकर बहस चल रही है।

जहां एक कोर्ट मामले पर सुनवाई कर रहा है, वहीं देशभर में इस मुद्दे पर आम लोगों में भी चर्चा हो रही है।

वहीं हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री और BJP सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे शांता कुमार ने सवाल उठाए हैं।

शांता कुमार समलैंगिक विवाह के विरोध में हैं। शांता ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह के सम्बन्ध में चल रही बहस एक रोचक और अत्यन्त चिन्ताजनक मोड़ पर पहुंच गई है।समलैंगिक विवाह पर कोर्ट में छिड़ी बहस, देशभर में चर्चा का बना मुद्दा Debate on same-sex marriage in the court, became a topic of discussion across the country

यदि सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी तो..

यदि सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दे दी तो लाखों वर्षों से बने हुए भारत के धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन को बहुत बड़ा धक्का लगेगा।

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शांता कुमार ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश चन्द्रचूड़ ने एक टिप्पणी करते हुए कहा कि पुरुष और नारी का सम्बंध केवल शारीरिक ही नहीं है, बल्कि सम्बन्धों में परस्पर भावनात्मक प्रेम भी हो सकता है।

एक पुरुष दूसरे पुरुष से केवल शरीर ही नहीं, भावनाओं से भी जुड़ सकता है। केन्द्र सरकार की ओर से समलैंगिक विवाह के विरुद्ध दलीलें की जा रही हैं।समलैंगिक विवाह पर कोर्ट में छिड़ी बहस, देशभर में चर्चा का बना मुद्दा Debate on same-sex marriage in the court, became a topic of discussion across the country

विद्वानों को सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी बात पहुंचानी चाहिए

शांता कुमार ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की इस टिप्पणी पर केन्द्र सरकार (Central Government) की ओर से तर्क दिया जाना चाहिए कि यदि पुरुष का पुरुष से और महिला का महिला से भावनात्मक सम्बंध है तो वे जीवन भर साथ रहें।

एक जन्म नहीं, कई जन्म साथ रहें, परन्तु विवाह के नाम से मान्यता देकर विवाह की संस्था को बदनाम करने की क्या जरूरत है।

लाखों साल से पूरी दुनिया में विवाह का मतलब एक पुरुष और नारी का साथ रहकर सन्तान उत्पन्न करना है।

सदियों से चली आ रही पूरी दुनिया की विवाह की संस्था, जिसे भारत में एक धार्मिक रूप दिया गया था, उसको अब बर्बाद करने की जरूरत नहीं है।

बुद्धिजीवी इस सवाल पर गंभीरता से अपने विचार व्यक्त नहीं कर रहे

कुमार ने कहा कि भौतिकवाद (Materialism) और नशे में मस्त, जो समलैंगिक खुले आम जुलूस निकालते हैं, उन्हें विवाह को कानूनी मान्यता मिलने पर एक पुरुष द्वारा दूसरे पुरुष से विवाह के लिए बारात ले जाने से कौन रोकेगा, तब क्या बेहुदा नजारा बनेगा।

शांता कुमार ने कहा कि मुझे हैरानी है कि देश के सभी बुद्धिजीवी (Intellectual) इस सवाल पर गंभीरता से अपने विचार व्यक्त नहीं कर रहे हैं। बहुत से विद्वानों को सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी बात पहुंचानी चाहिए।

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