नई दिल्ली: मुंडका अग्निकांड घटना में संजय गांधी अस्पताल की मोर्चरी में बोरों में रखे शव व उनके अवशेषों पर धुएं की कालिख लगी हुई है। इसके अलावा उनपर प्लास्टिक और कार्बन जैसी चीज चिपकी हुई है।
अवशेष लकड़ी की तरह से सख्त हो गए हैं। जिनको पहचान पाना मुश्किल है। उनकी पहचान सिर्फ DNA जांच से ही हो सकती है।
ऐसे मामलों में जांच करने वाले अधिकारियों ने बताया कि यह प्रक्रिया काफी मुश्किल होती है। क्योंकि अवशेष काफी छोटे होने पर उनको एक एक करके इक्ट्ठा करना और परिजनों को देना काफी मुश्किल होता है।
अपनों की बॉडी पूरी मिल जाए उम्मीद कम ही है-परिजन
अपनों के शवों की पहचान के लिये रविवार को भी संजय गांधी अस्पताल में कई परिजन अपना डीएनए देने आए। उनका कहना था कि मोर्चरी में जो शव एवं अवशेष पड़े हैं उनको देखकर उनके अपने की पहचान नहीं हो पा रही है।
इसलिए वह डीएनए देने आए हैं। लेकिन उनको शव और अवशेष देखने के बाद लगता नहीं हैं कि उनके अपने की पूरी बॉडी उनको मिल पाएगी भी या नहीं।
उनका कहना है कि अवशेषों को बोरे में रखा हुआ है। ऐसे में अगर अवशेषों से डीएनए मिल भी जाता है तो शायद उनके हाथ में एक टूकड़ा ही हाथ लगे। जिनको अपना सदस्य मानकर उसका अन्तिम संस्कार कर दें।
पुलिस ने बताया करीब सौ थे,चश्मदीदों ने बताया ढाई से ज्यादा थे
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि motivation speech में करीब सौ लोग मौजूद थे। जो हादसे का शिकार हुए थे। जिसमें से कई की मौत हो गई और कई बच गए तो कुछ लापता है।
जिनके बारे में पता करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन पुलिस के उल्ट चश्मदीद व परिजन अब पुलिस की थ्यौरी पर ही प्रश्न खड़े कर रहे हैं।
उनका कहना है कि हादसे के वक्त इमारत में करीब ढाई सौ लोग मौजूद थे। जिसमें महिलाएं काफी ज्यादा थी।
भाग्य विहार के डी ब्लॉक को किसकी नजर लगी-परिजन
मुंडका हादसे में मारे गए व अभी तक लापता लोगों में से ज्यादा तक लोग भाग्य विहार डी ब्लॉक और परवेश नगर के रहने वाले थे। मुंडका हादसे में बाद इलाके में पूरी तरह से मातम छाया हुआ है।
गलियों सूनी पड़ी है। बस सभी के मुंह पर हादसे की ही बातें हैं। पिछले तीन दिनों से किसी न किसी गली में कोई न कोई शव आता है।
जिसके बाद इलाके के लोग वहां पर जाकर श्रद्धांजलि देते हैं और परिवार वालों को सत्भावना दे रहे हैं। जिनके सदस्य अभी तक नहीं मिले हैं उनके घर में सुबह शाम का चूल्हा तक नहीं जल रहा है।
जबकि जो बाल बाल बच गए। वो अभी तक दहशत से बाहर निकल नहीं रहे हैं। लोगों का कहना है कि जनाब भाग्य विहार को किसी की बुरी नजर लग गई है।
भागय विहार के डी 1 ब्लॉक में रहने वाली काजल ‘गोयल बंधू’ की कंपनी काम किया करती थी
भागय विहार के डी 1 ब्लॉक में रहने वाली काजल ‘गोयल बंधू’ की कंपनी में एक साल से काम करते हुए वाईवाई पैक करना व सफाई किया करती थी।
काजल हादसे के वक्त दूसरी मंजिल से रस्सी के सहारे नीचे कूद गई थी। लेकिन उससे पहले उसके हाथ जल गए थे। जिससे काफी ज्यादा चोट लगी। जिसके बारे में उसके किसी जानकार ने परिवार को फोन से जानकारी दी थी।
उसे घायलावस्था में संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जिसके बाद वह अब घर पर है। लेकिन दोनों हाथों में गंभीर चोट लगने के कारण उसको नहीं पता कि उसके हाथ ठीक हो पाएंगे भी या नहीं।
घर में आर्थिक स्थिति कुछ सही करने के लिये घर से नौकरी करने के लिये निकली थी। लेकिन उपचार के लिये पैसा किस तरह से आएगा पता नहीं है। उसको पता चला है कि उसकी सहेलियां और सीनियर की मौत हो गई है या फिर वो लापता हैं।
दो महीने ही नौकरी को लगे थे-साजिया प्रवीण
साजिया प्रवीण ने बताया कि दो महीने ही नौकरी को लगे थे। पत्नी जुबैर आलम और तीन छोटे बच्चे हैं। हादसे के समय जब उसको लगा कि वह नहीं बच पाएगी। तब वह दूसरी मंजिल से नीचे कूद गई थी।
उसने अपने साथियों की चीखपुकारसूनी थी। अगर वह भी वहीं पर कुछ मिनट रूक जाती तो शायद उसका दम घुट जाता और फिर वो आग की चपेट में आकर मर जाती। वह काफी घबरा गई थी।
उसने सोचा था कि मरना तो है क्यों न वह कूद ही जाए। लेकिन उस वक्त मुझे अपने पति और तीनों बच्चों की बहुत याद आ रही थी। वह बच तो गई है,लेकिन दोनों हाथ बुरी तरह से जल गए हैं। पता नहीं कब ठीक हो पाऊंगी।
मंगलसूत्र और अंगूठी से पहचाने यशौदा और रंजू देवी के शव
यशौदा और रंजू देवी के शवों को शनिवार शाम को भागय विहार में लाया गया था। जिसके बाद लोगों में जहां कंपनी मालिकों को लेकर गुस्सा था,वहीं परिवार के प्रति संवेदना भी थी।
यशौदा के परिवार वालों ने बताया कि यशौदा का शव मार्चरी में झुलसी हालत में था। उसके मंगलसूत्र,चूडिय़ों और झूमके से उसकी पहचान हो पाई थी।
उसका चेहरा पूरी तरह से जल चुका था। शुक्र यह है कि उसका शव मिल गया है। लेकिन जिनका नहीं मिला है। उन लोगों से पूछो कि उनके दिलों पर क्या बीत रही है।
वहीं रंजू देवी के परिवार वालों ने बताया कि शरीर पूरी तरह से काला पड़ा था। उसके बचे कुछ कपड़ों,नखून पॉलिश और कड़े से उसकी पहचान हो पाई थी। बाल भी काफी ज्यादा नहीं जले हुए थे।
जिनके नहीं मिले वो एक दूसरे का दर्द बांटने की कोशिश कर रहे हैं
भागय विहार में आशा,नीशा और काजल के परिवार वाले तीसरे दिन भी इनको तलाशने के लिये संजय गांधी अस्पताल गए हुए थे। इसी तरह से परवेश नगर में रहने वाले भारती,गीता और गौरी समेत ऐसे कई महिलाएं आदी थे।
जिनके बारे में अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। सभ उनको मृत मान चुके हैं। भागय विहार और परवेश नगर में पिछले तीनों से उनके बारे में ही बातें होती है।
हर रोज लोग न्यूजपेपर लेकर सिर्फ मुंडका अगिनकांड की ही खबरें पड़ रहे हैं। जिनमें फोटो देखकर थोड़ा तसल्ली कर लेते हैं कि शायद उनका भी सदस्य कहीं पर मिल जाए।
देवर भाभी बचे तो परिवार ने लगा लिया गले,बोले अब नहीं जाना नौकरी करने
परवेश नगर में रहने वाले देवर रमण कुमार और भाभी मणिदेवी Goyal Brothers की कंपनी में नौकरी करते थे। जो आज किसी तरह से उस अग्निकांड में से बचकर आज अपने घर पर हैं।
दोनों ने बताया कि वो हादसा सोचकर भी डर लगने लगता है,लेकिन हमकों भी अपने साथियों के खाने का डर है। शायद सभी जिंदा होते। जो लापता है उनका लगता है कि वो भी हादसे का शिकार हो गए थे।