नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड की उस याचिका पर राहत देने से इंकार कर दिया जिसमें उसकी कथित संपत्ति को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) को आवंटित करने को चुनौती दी गई है।
अदालत ने इसके साथ ही केंद्र सरकार को 123 संपत्ति को गैर अधिसूचित करने पर पुनर्विचार करने के लिए दाखिल याचिका अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने कहा कि स्थगन आदेश देने का कोई आधार नहीं है और टिप्पणी कि वर्ष 2017 में आईटीबीपी को आंवटित संपत्ति और इस मामले में अगर दिल्ली वक्फ बोर्ड सफल होती है तो आवंटन रद्द किया जा सकता है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं मौजूदा समय में स्थगन आदेश देने को इच्छुक नहीं है। यह स्थगन देने का स्थान नहीं है। यह ऐसा नहीं है कि संपत्ति निजी लोगों को चली गई है। हम केंद्र को इसे वापस करने को कह सकते हैं।’’
यह संपत्ति दक्षिणी दिल्ली के मथुरा रोड इलाके में स्थित है। अदालत ने इसके साथ ही केंद्र, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और आईटीबीपी बल को नोटिस जारी कर याचिका पर जवाब देने दाखिल करने का निर्देश दिया।
दिल्ली वक्फ बोर्ड ने केंद्र सरकार द्वारा उसकी संपत्तियों को गैर अधिसूचित करने के लिए वर्ष 2017 में गठित एक सदस्यीय समिति की रिपोर्ट आने से पहले ही इसी मामले पर दो सदस्यीय समिति गठित करने पर उच्च न्यायालय का रुख किया।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील कीर्तिमान सिंह ने अंतरिम राहत देने का विरोध करते हुए कहा कि उक्त संपत्ति पर कोई निर्माण नहीं हुआ है और वक्फ बोर्ड भविष्य में कोई शिकायत होने पर अदालत का रुख कर सकता है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि बोर्ड समिति के समक्ष चल रही प्रक्रिया में शामिल हो सकता है और एक सदस्यीय समिति की रिर्पोट अनिर्णायक होने की वजह से खारिज की गई है और याचिकाकर्ता से साझा नहीं हो सकती है।
वक्फ बोर्ड की ओर से पेश वकील वजीह शफीक ने अदालत से आईटीबीपी के आवंटन पर अंतरिम स्थगन देने का अनुरोध करते हुए दावा किया कि याचिकाकर्ता को जानकारी मिली है कि यह आवंटन मौजूदा याचिका दाखिल होने से ठीक पहले किया गया।
उन्होंने दावा किया कि केंद्र ‘‘राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कदम’’उठा रहा है और अन्य संपत्तियों के संदर्भ में भी‘‘हम अपनी उंगली जला सकते हैं।’’
अदालत अब इस मामले में 28 अप्रैल को सुनवाई करेगी।