The Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली Medical एसोसिएशन की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें चिकित्सकों को हिंसा से बचाने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायालय ने कहा कि ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए पहले से ही कानून मौजूद हैं।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने हालांकि दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (DMA) को हिंसा के किसी विशेष मामले में उचित मंचों पर जाने की स्वतंत्रता दी।
न्यायमूर्ति खन्ना ने DMA की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया से कहा, ‘‘हाल ही में मैं एक Hospital गया था, मैंने वहां तख्तियां देखीं जिन पर लिखा था कि डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा एक गंभीर अपराध है। आप देखिए कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए पहले से ही कानून मौजूद हैं।’’
Superme कोर्ट DMA की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें मरीजों के रिश्तेदारों और अन्य लोगों द्वारा डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर हमलों को रोकने के लिए अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों में पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की भी मांग की गई थी।
हंसारिया ने कहा कि चिंता निवारक उपायों को लेकर है, क्योंकि डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं अक्सर हो रही हैं।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि अदालत कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती और आजकल हर अस्पताल में ऐसी किसी भी घटना को रोकने के लिए पुलिस अधिकारी या सुरक्षाकर्मी मौजूद रहते हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि सभी अस्पतालों में ऐसी स्थिति नहीं है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित अधिकांश चिकित्सा संस्थानों में सुरक्षा व्यवस्था का अभाव है।
पीठ ने कहा कि हिंसा में लिप्त किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई की जा सकती है। उन्होंने कहा कि एकमात्र सवाल कानून के क्रियान्वयन का है।
पीठ ने कहा, “हम याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। किसी विशेष मामले में किसी भी कठिनाई के मामले में, डॉक्टरों का याचिकाकर्ता संघ सक्