नई दिल्ली : भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए लोकतंत्र को सबसे उपयुक्त बताते हुए प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने शुक्रवार को कहा कि तानाशाही शासन के जरिए देश की समृद्ध विविधता को कायम नहीं रखा जा सकता।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के स्थापना दिवस पर 19वां डीपी कोहली स्मृति व्याख्यान देते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘लोकतंत्र के साथ हमारे अब तक के अनुभव को देखते हुए, यह संदेह से परे साबित होता है कि लोकतंत्र हमारे जैसे बहुलवादी समाज के लिए सबसे उपयुक्त है।’’
उन्होंने कहा, ‘तानाशाही शासन के माध्यम से हमारी समृद्ध विविधता को कायम नहीं रखा जा सकता। लोकतंत्र के माध्यम से ही हमारी समृद्ध संस्कृति, विरासत, विविधता और बहुलवाद को कायम रखा और मजबूत किया जा सकता है।’
‘लोकतंत्र: जांच एजेंसियों की भूमिका और जिम्मेदारी’ पर अपने व्याख्यान में न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘लोकतंत्र को मजबूत करने में हमारा निहित स्वार्थ है, क्योंकि हम अनिवार्य रूप से जीने के लोकतांत्रिक तरीके में विश्वास करते हैं। हम भारतीय अपनी स्वतंत्रता से प्यार करते हैं। जब भी हमारी स्वतंत्रता को छीनने के लिए कोई प्रयास किया गया है, हमारे सतर्क नागरिकों ने निरंकुश लोगों से सत्ता वापस लेने में संकोच नहीं किया।’
उन्होंने कहा कि इसलिए यह आवश्यक है कि पुलिस और जांच निकायों सहित सभी संस्थान लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखें और उन्हें मजबूत करें।
न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘उन्हें किसी भी सत्तावादी प्रवृत्ति को पनपने नहीं देना चाहिए। उन्हें संविधान के तहत निर्धारित लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर काम करने की जरूरत है। कोई भी विचलन संस्थानों को नुकसान पहुंचाएगा और हमारे लोकतंत्र को कमजोर करेगा।’
उन्होंने कहा कि पुलिस और जांच एजेंसियों की वास्तविक वैधता हो सकती है, लेकिन फिर भी संस्थानों के रूप में, उन्हें अभी भी सामाजिक वैधता हासिल करनी है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘पुलिस को निष्पक्ष रूप से काम करना चाहिए और अपराध की रोकथाम पर ध्यान देना चाहिए। उसे समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जनता के सहयोग से भी काम करना चाहिए।’
उन्होंने विभिन्न जांच एजेंसियों को एक छत के नीचे लाने के लिए एक स्वतंत्र निकाय बनाने का भी आह्वान किया।