देवघर: बाबा बैद्यनाथ के दरबार की कथा निराली है। मिथिलावासी सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।
भारतीय सभ्यता में बहू-बेटियों और बहनों को प्यार, सम्मान और उपहार देने की परंपरा है। घर में जब भी कोई खुशहाली या त्योहार का मौका आता है तो घरवाले उन्हें याद करते हैं। संदेश भेजते हैं।
बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाने के पीछे भी यही कहानी है। तिरहूत यानी मिथिलांचल हिमालय की तराई में बसा है।
यहां के लोगों का मानना है कि हमलोग हिम राजा की प्रजा हैं। ऐसे में पार्वती के पिता हिमराज के दामाद भोलेनाथ मिथिलावासियों के भी दामाद हैं और तिलक चढ़ाने आए तिलकहरू उनके साले। बसंत पंचमी के दिन मंदिर उन्हीं के हवाले रहता है।
उन्हें भोलेनाथ के साथ गुलाल की होली खेलने में या पूजा करने व अन्न-धन चढ़ाने में कोई बाधक नहीं बनता।
मिथिलावासी भगवान को शंकर को विधि-विधान, गीत, नृत्य, गाजे-बाजे के साथ बाबा संग अबीर-गुलाल खेलते हुए उन्हें तिलक चढ़ाते हैं।
यह भगवान शंकर के साथ मिथिलावासियों की नातेदारी का उत्सव है। इस कारण श्रद्धा भक्ति के साथ हंसी-ठिठोली, गुलाल की होली, गीत-भजन और थोड़े से प्यार भरे हुड़दंग की भी छूट है।
भगवान शिव को तिलक चढ़ाने मिथिलांचल से करीब 80 हजार तिलकहरु देवघर पहुंच हुए हैं।