नई दिल्ली: भारतीय खगोलविदों ने फिडिंग विशालकाय ब्लैक होल या ब्लेजर से विशाल चमक दिखाई देने के बारे में जानकारी दी है।
इस ब्लैक होल को बीएल लैकेर्टे भी कहा जाता है। इस ब्लेजर से, जो एक सबसे पुराना खगोलिये पिण्ड है, इस चमक का विश्लेषण ब्लैक होल के द्रव्यमान तथा इस उत्सर्जन के स्रोत का पता लगाने में सहायता कर सकता है।
ऐसा विश्लेषण ब्रह्मांड के विकास के विभिन्न चरणों के रहस्यों की जांच करने और विभिन्न घटनाओं का पता लगाने में मदद कर सकता है।
बहुत दूर स्थित आकाशगंगाओं के केन्द्र में ब्लेजरों या विशालकाय (सुपरमासिव) ब्लैक होल ने खगोलविद समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि इनकी उत्सर्जन प्रणाली बहुत जटिल है।
ये ब्लैक होल लगभग प्रकाश की गति से यात्रा करने वाले चार्ज कणों के जेट का उत्सर्जन करते हैं और इस ब्रह्मांड के सबसे चमकदार और ऊर्जावान पिण्डों में से एक हैं।
बीएल लैकेर्टे ब्लेजर एक करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। यह सबसे प्रमुख 50 ब्लेजरों में शामिल है। इसे अपेक्षाकृत छोटी दूरबीनों की मदद से देखा जा सकता है।
यह उन 3 – 4 ब्लेजरों में से एक है, जिसके बारे में खगोलविदों के एक अंतरराष्ट्रीय कंसोर्टियम, व्होल अर्थ ब्लेजर टेलीस्कोप (डब्ल्यूईबीटी) द्वारा चमक का अनुभव करने का पूर्वानुमान लगाया गया था।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन एक स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस) के डॉ. आलोक चंद्र गुप्ता के नेतृत्व में खगोलविदों का एक दल अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण अभियान के एक हिस्से के रूप में अक्टूबर, 2020 से ही इस ब्लेजर का अध्ययन कर रहा था, जिसने 16 जनवरी, 2021 को असाधारण रूप से उच्च चमक का पता लगाया है।
इस कार्य में नैनीताल स्थित संपूर्णानंद टेलिस्कोप (एसटी) और 1.3 एम देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलीस्कोप की मदद ली गई है।