नई दिल्ली: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) में शामिल होने के मुद्दे पर कांग्रेस के अलग-अलग नेताओं के अलग-अलग विचार हैं, भले ही पार्टी द्वारा डील पर रुख अख्तियार किए एक साल बीत गया हो, जिस पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए।
आठ साल की कठिन वार्ता के बाद, 15 नवंबर को सभी आसियान देशों (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं) ने व्यापार समझौते पर पांच एफटीए भागीदारों — चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ हस्ताक्षर किए।
कांग्रेस ने तब सरकार से इसमें शामिल नहीं होने का आग्रह किया था। जैसा कि भारत ने पिछले साल इससे दूर रहने का फैसला किया।
यह मुद्दा बहस के लिए खुला रहा क्योंकि पार्टी ने पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के रुख का इंतजार किया, जिन्होंने मंगलवार तक अपना विचार सुरक्षित रखा था।
जहां आनंद शर्मा ने आरसीईपी में नहीं शामिल होने को बैकवर्ड लीप करार दिया, वहीं जयराम रमेश ने कहा कि आर्थिक सौदे में शामिल नहीं होने का मतलब है कि कांग्रेस का कहना सही था।
21 अक्टूबर, 2019 को, रमेश ने कहा था कि नोटबंदी और जीएसटी के बाद अगर भारत आरसीईपी की सदस्यता ग्रहण करता है तो ये तीसरा आर्थिक झटका होगा।
कांग्रेस ने तर्क दिया है कि क्षेत्रीय आर्थिक सौदा घरेलू उद्योग को मार देगा क्योंकि अर्थव्यवस्था में वैसी उछाल नहीं है जैसी कि यूपीए शासन के दौरान थी।
वहीं, शर्मा ने कहा, आरसीईपी में शामिल नहीं होने का भारत का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है। इसमें शामिल होना एशिया-प्रशांत एकीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए भारत के रणनीतिक और आर्थिक हित में है।
शर्मा ने कहा, भारत में आरसीईपी के हिस्से के रूप में स्वीकार किए जाने के लिए बरसों से चली आ रही समझौता वार्ता की उपेक्षा की गई है। हम अपने हितों की रक्षा के लिए सुरक्षा उपायों पर बातचीत कर सकते हैं। आरसीईपी से बाहर रहना एक पिछड़ा कदम है।
चिदंबरम द्वारा आरसीईपी पर मोदी सरकार के रुख की आलोचना करने के बाद शर्मा का बयान आया है, लेकिन उन्होंने कहा कि जब तक कांग्रेस इस मुद्दे पर आधिकारिक रुख नहीं ले लेती, तब तक वह अपना फैसला सुरक्षित रखेंगे।
चिदंबरम ने सोमवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर के भाषण पर भी नाराजगी व्यक्त की थी, जहां उन्होंने व्यापार समझौतों के खिलाफ बात की और संरक्षणवाद के गुणों की प्रशंसा की।
चिदंबरम ने कहा, श्रीमान जयशंकर वह भाषा और उन शब्दों में बोल रहे हैं जो मैंने 1970 और 1980 के दशक में सुने थे।
चिदंबरम ने कहा कि भारत के आरसीईपी में शामिल होने के नफा-नुकसान हैं। लेकिन यह बहस संसद या लोगों या विपक्षी दलों के बीच कभी नहीं हुई। यह केंद्रीयकृत निर्णय का एक और बुरा उदाहरण है।
हालांकि, कांग्रेस ने आरसीईपी में शामिल होने पर चिंता जताई थी, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 15 देशों की दुनिया की सबसे बड़ी व्यापारिक निकाय बन गई।