Do June ki Roti : आज 2 जून (June) है और आपने भी सोशल मीडिया (Social Media) पर “दो जून की रोटी” (Do June ki Roti) वाले ढेरों पोस्ट देखे होंगे।
इसके अलावा भी कई बार आपने ‘दो जून की रोटी’ वाली कहावत सुनी ही होगी। और कई बार इन कहावतों को सुनकर आपके दिमाग में भी ये जरूर आता होगा कि आखिर “दो जून की रोटी” का क्या मतलब होता है।
क्या इसके पीछे कोई विशेष कहानी छुपी है या फिर अतीत से इसका कोई नाता है। तो चलिए आज हम आपके सारे सवालों के जवाब देते हैं।
“दो जून की रोटी” का मतलब
प्रचलित कहावत ‘दो जून की रोटी’ का इस्तेमाल अक्सर आपने बड़े-बुजुर्गों को करते सुना होगा, जिसका अर्थ है कि दिनभर में आपको दो टाइम का खाना मिल जाना।
दरअसल, अवधी भाषा में ‘जून’ का मतलब ‘वक्त’ यानी समय से होता है।
जिसे वे दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर कहते थे।
इस कहावत को इस्तेमाल करने का मतलब यह होता है कि इस महंगाई और गरीबी के दौर में दो टाइम का भोजन भी हर किसी को नसीब नहीं होता।
कड़ी मेहनत से नसीब होती है दो वक्त की रोटी
आपने अपने आस-पास अक्सर देखा होगा कि लोग केवल दो वक्त की रोटी यानी सुबह-शाम के खाने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं।
वहीं, जून का महीना सबसे गर्म होता है। जून में भयकंर गर्मी पड़ती है और इस महीने में अक्सर सूखा पड़ता है, जिसके कारण जानवरों के लिए भी चारे-पानी की कमी हो जाती है।
हमारा भारत कृषि प्रधान देश है, इस समय किसान बारिश के इंतजार और नई फसल की तैयारी के लिए तपते खेतों में काम करता है।
इस चिलचिलाती धूप में खेतों में उसे ज्यादा मेहनत करना पड़ता है और तब कहीं जाकर उसे रोटी नसीब होती है।