Trump separated America from Paris Agreement: अमेरिका में राष्ट्रपति के रूप में अपनी वापसी के पहले दिन Donald Trump ने पेरिस समझौते से अपने देश के बाहर होने का औपचारिक नोटिस जारी किया।
पेरिस समझौता, जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने के लिए एक महत्वपूर्ण वैश्विक संधि है।
ट्रंप ने आदेश पर हस्ताक्षर करने से पहले उत्साही समर्थकों के बीच अपने कारणों की घोषणा की और इस वैश्विक समझौते को ‘अनुचित व एकतरफा’ करार दिया।
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया। वह 2017 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी ऐसा कर चुके हैं।
ट्रंप का यह कदम वैश्विक जलवायु परिवर्तन को रोकने के ठोस प्रयासों के लिए एक बड़ा झटका है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emissions) के मामले में चीन के बाद अमेरिका दुनिया में दूसरा नंबर पर है।
जलवायु परिवर्तन को रोकने के वैश्विक प्रयासों के लिए अमेरिका बेहद महत्वपूर्ण है।
क्या है पेरिस समझौता
वर्ष 2015 में 196 देशों ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे और यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए पहला व्यापक वैश्विक समझौता है।
इस समझौते का समग्र लक्ष्य वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेल्सियस ऊपर तक रखना है और वृद्धि को डेढ़ सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयास करना है।
समझौते के तहत, प्रत्येक राष्ट्र को वैश्विक तापमान लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की खातिर राष्ट्रीय योजनाएं बनानी होंगी। इन योजनाओं को ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ के रूप में जाना जाता है।
ट्रंप के हटने का मतलब
राष्ट्रपति ट्रंप के पिछले कार्यकाल में अमेरिका सिर्फ चार महीनों के लिए पेरिस समझौते से बाहर हुआ था हालांकि उसका प्रभाव कुछ हद तक सीमित रहा था क्योंकि राष्ट्रपति जो बाइडन ने 2021 की शुरुआत में अमेरिका को पुन: समझौते में शामिल कर लिया था।
इस बार, अमेरिका के समझौते से अलग होने की आधिकारिक घोषणा जल्द ही हो जाएगी और फिर वह ईरान, लीबिया और यमन के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र का एक मात्र सदस्य होगा, जो समझौते में शामिल नहीं हैं।
अमेरिका, जनवरी 2026 तक पेरिस समझौते में एक पक्ष के रूप में भाग ले सकता है, जिसका मतलब है कि वह इस साल ब्राजील में होने वाले सीओपी30 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में बातचीत की कोशिश कर सकता है।
COP30 एक बड़ा मंच है। अमेरिका के हटने का मतलब है कि अगर वह इसमें भाग लेता भी है तो वह बैठक में कोई नया योगदान नहीं देगा।
अमेरिका के इस बैठक से बाहर होने के बाद, पेरिस समझौते के अन्य पक्षों के पास जलवायु वार्ता को आगे बढ़ाने का बेहतर मौका है।
इस समय ऐसा नहीं लगता कि पेरिस समझौते के पक्षकार अन्य देश ट्रंप के साथ मिलकर काम करने की तैयारी कर रहे हैं।
सीओपी29 वार्ता में अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली ने अपने वार्ताकारों को कुछ ही दिनों में वापस आने का आदेश दिया था, जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया था।
माइली ने पहले जलवायु आपातकाल को ‘समाजवादी झूठ’ के रूप में वर्णित किया था।
फिलहाल ट्रंप पेरिस समझौते के मूल समझौते ‘यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ से अलग नहीं हुए हैं इसलिए पेरिस समझौते से हटने के बाद भी अमेरिका एक पर्यवेक्षक के रूप में सीओपी बैठकों में भाग ले सकता है ।
फायदे और नुकसान
बेशक अमेरिका के पेरिस समझौते से हटने के कुछ नुकसान भी हैं।
पेरिस समझौते से बाहर निकलने का मतलब है कि अमेरिका को अब अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर वार्षिक आंकड़े जारी करने की आवश्यकता नहीं है। पारदर्शिता की कमी के कारण यह निर्धारित करना कठिन हो जाएगा कि दुनिया समग्र रूप से उत्सर्जन में कमी के मामले में किस तरह आगे बढ़ रही है।
बाइडन सरकार में अमेरिका ने विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा अपनाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए धन दिया (हालांकि यह वादे से कम रहा)। ट्रंप से इस वित्तपोषण में कटौती किये जाने की उम्मीद है।
अमेरिका के इस समझौते से हटने के कारण कमजोर देशों की स्थिति और भी ज्यादा मुश्किल हो जाएगी। ट्रंप का हालिया कदम जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रयासरत अमेरिकियों और इसके विनाशकारी प्रभावों से जूझ रहे लोगों के लिए विशेष रूप से दुखद है।
हम उम्मीद कर सकते हैं कि पेरिस में चीन और यूरोपीय संघ जैसे अन्य पक्ष नेतृत्व की भूमिका निभाते रहेंगे तथा अन्य देश अमेरिका के हटने से बने अंतर को पाटने का प्रयास करेंगे।
इसलिए कुल मिलाकर अमेरिका का पेरिस समझौते से बाहर होना कई बुरे विकल्पों में से सबसे बेहतर विकल्प है।
यह ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय जलवायु (International Climate) कार्रवाई को अस्थिर करने की क्षमता को कम करता है, जिससे अन्य लोग इस कमी को पूरा करने में सक्षम हो सकते हैं।