नई दिल्ली: स्वास्थ्य (Health) को लेकर देश में हर दूसरा व्यक्ति इतना जागरुक है कि वह तरह-तरह की जानकारियां अपने पास रखता है। हालांकि रखना भी चाहिए।
ये अच्छा है। लेकिन यदि वैज्ञानिक (Scientist) उस जानकारी को गलत बताएं तो आप क्या करेंगे। जी हां, ऐसा एक स्टडी (Study) में सामने आया है। इसके बाद लोग सोच में पड़ गए हैं कि करें तो क्यां।
नई स्टडी पानी पाने की भ्रांतियों (Fallacies) को स्पष्ट किया गया है। ज्यादातर लोगों को यही पता है कि ज्यादा से ज्यादा पानी हर दिन पीना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।
दिन में आठ गिलास पानी (Water) पीना कुछ ज्यादा ही हो जाएगा। इसलिए कहा गया है कि मात्रा एक गिलास से भी शरीर (Body) में पानी की पूर्ति की जा सकती है।
इसमें बताया गया है कि कैसे इंसान के सेवन के लिए पानी की जरूरतों को मैनेज (Manage) करना ज्यादा मुश्किल हो सकता है क्योंकि धरती की जलवायु (Climate) और मानव आबादी (Human Population) में परिवर्तन होते हैं।
26 देशों के वैज्ञानिकों ने की है स्टडी
यह स्टडी 26 देशों के 5600 से ज्यादा लोगों पर की गई थी। वैज्ञानिकों (Scientists) ने इन लोगों को पांच प्रतिशत ‘दोगुने लेबल वाले पानी’ (Double Labeled Water) से समृद्ध 100 मिलीलीटर पानी दिया।
एक तरह का पानी होता है, जिसमें कुछ हायड्रोजन मॉलिक्यूल्स (Hydrogen Molecules) को स्थिर ड्यूटेरियम (Deuterium) नाम के आइसोटोप एलिमेंट (Isotope Element) से रिप्लेस (Replace) कर दिया जाता है।
यह पूरी तरह सुरक्षित और मानव शरीर में स्वाभाविक रूप से होता है। जिस रफ्तार से अतिरिक्त ड्यूटेरियम (Deuterium) खत्म हो जाता है, उससे पता चलता है कि शरीर कितनी तेजी से अपना पानी बदल रहा है।
इस आयु में महिला-पुरषों में ज्यादा वाटर टर्नओवर देखा गया
20-30 साल की उम्र (Age) के पुरुषों और 20 से 55 साल की महिलाओं में ज्यादा वाटर टर्नओवर देखा गया, जो पुरुषों में 40 की उम्र और महिलाओं में 65 साल की उम्र के बाद कम हो जाता है।
नवजात शिशुओं (Newborn Babies) में पानी की टर्नओवर (Turnover) दर सबसे अधिक थी, जो हर दिन लगभग 28 प्रतिशत की जगह लेती थी।
पुरुष समान परिस्थितियों में महिलाओं की तुलना में प्रति दिन लगभग आधा लीटर ज्यादा पानी पीते हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि यह मौजूदा स्टडी (Study) संकेत देती है कि सभी के लिए पानी पीने का आकार एक समान नहीं हो सकता और जो 8 ग्लास पानी हर दिन पीने की सलाह दी जाती है, उसका कोई ठोस सबूत नहीं है।
विकसित देशों के लोग जो क्लाइमेट कंट्रोल (Climate Control) वाली इनडोर सेंटिंग्स (Indoor Settings) में रहते हैं, उनका गरीब देशों के मुकाबले वाटर टर्नओवर कम है क्योंकि गरीब देशों के लोग मैनुअल लेबर्स (Manual Labors) के तौर पर काम कर रहे हैं।