Electoral Bonds: इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) से जुड़ी जानकारी ने विश्लेषकों को आश्चर्यचकित कर दिया है। आश्चर्य इस बात का है कि राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चुनावी चंदा देनेवालों में बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां शामिल नहीं हैं।
वहीं, करीब 618 करोड़ रुपये के Electoral Bond के खरीदारों का पता नहीं चल पा रहा है।
गौरतलब है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने चुनाव आयोग (Election Commission of India) को इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) से संबंधित सभी जानकारी प्रोवाइड करा दी है।
गुरुवार की शाम को चुनाव आयोग ने इसे अपनी वेबसाइट पर अपडेट कर दिया है। प्रारंभिक जांच में 618.73 करोड़ रुपये के 1628 बॉन्ड के खरीदारों का पता नहीं लगा है। राजनीतिक दलों ने इन Bond को स्टेट बैंक से भुना भी लिया है।
चुनावी चंदा देनेवालों में बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां शामिल नहीं
स्टेट बैंक ने जो चुनावी चंदे के Bond का विवरण दिया है, उसमें बड़ी भारतीय कंपनियों के नाम नहीं हैं। यह सभी को आश्चर्यचकित कर रहा है। यह माना जा रहा है कि बड़ी कंपनियों ने चुनावी Bond के स्थान पर राजनीतिक दलों को नकद में चंदा दिया है।
500 करोड़ का राजस्व और 360 करोड़ के बॉन्ड खरीदे
चुनाव आयोग द्वारा जारी इलेक्टोरल बॉन्ल के विश्लेषण से पता चला है कि रिलायंस से जुड़ी क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड ने 410 करोड़ रुपये के Electoral Bond से चंदा देनेवाली तीसरी बड़ी कंपनी है। इसने भारतीय जनता पार्टी को 385 करोड़ तथा शिवसेना को 25 करोड़ रुपये का चंदा दिया है।
2021-22 में इस कंपनी का Profit केवल 22 करोड़ रुपये का था, लेकिन इसी अवधि में इसने 360 करोड़ रुपये का चुनावी चंदा दिया। वर्ष 2022-23 में कंपनी का कुल राजस्व (revenue) 500 करोड़ रुपये का था। इस अवधि में उसने 50 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदकर चुनावी चंदा दिया।
ये हैं चुनावी चंदा देनेवाली टॉप 5 कंपनियां
फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस द्वारा 1368 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा दिया गया।
मेघा इंजीनियरिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर द्वारा 966 करोड़ रुपये, केवेंटर समूह द्वारा 617 करोड़, क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 480 करोड़ तथा वेदांता लिमिटेड द्वारा 400 करोड़ रुपये का चंदा राजनीतिक दलों को दिया गया है। इसमें भारत की कोई भी बड़ी Corporate Company शामिल नहीं है।
चुनावी बॉन्ड के पूरे डेटा का विश्लेषण करने पर पता चल रहा है कि चुनावी चंदा देनेवालों की सूची में देश की नामी-गिरामी कंपनियां शामिल नहीं हैं।