नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नये कृषि कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों ने दिल्ली की सीमा पर ही डटे रहने का फैसला लिया है।
यह फैसला विरोध प्रदर्शन में जुटे विभिन्न किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की कोर कमेटी की रविवार को यहां हुई एक बैठक में लिया गया है।
बैठक में लिए गए फैसले की जानकारी देते हुए भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के एक नेता ने बताया कि किसान दिल्ली बॉर्डर पर ही डटे रहेंगे और यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार किसानों के प्रतिनिधियों से बातचीत नहीं करेंगे।
उधर, उत्तर प्रदेश से लगती राष्ट्रीय राजधानी की सीमा स्थित गाजीपुर में प्रदर्शन कर रहे भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी बताया कि कोर कमेटी का यही फैसला है कि फिलहाल किसान दिल्ली की सीमा पर ही प्रदर्शन करेंगे।
नये कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन रविवार को चौथे दिन जारी है।
प्रदर्शनकारी किसान नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि नये कृषि कानून से किसानों के बजाय कॉरपोरेट को फायदा होगा।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को किसानों से दिल्ली के बुराड़ी ग्राउंड आकर प्रदर्शन करने की अपील की। साथ ही, उन्होंने किसानों को यह भी आश्वासन दिया कि बुराड़ी ग्राउंड शिफ्ट होने के दूसरे दिन ही भारत सरकार उनके साथ चर्चा के लिए तैयार है।
लेकिन किसान नेताओं ने बुराड़ी ग्राउंड में प्रदर्शन करने की गृहमंत्री की अपील ठुकरा दी है। वे नये कृषि कानूनों को वापस लने की मांग पर अड़े हुए हैं।
बता दें कि नये कृषि कानून से संबंधित मसले समेत किसानों की समस्याओं को लेकर पंजाब के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और केंद्रीय मंत्रियों के बीच बीते दिनों 13 नवंबर को नई दिल्ली स्थित विज्ञान-भवन में हुई बैठक में कई घंटे तक बातचीत हुई थी और दोनों पक्षों ने आगे भी बातचीत जारी रखने पर सहमति जताई थी।
बैठक में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ रेलमंत्री पीयूष गोयल भी मौजूद थे।
इस बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री ने पंजाब के किसान नेताओं को नये कृषि कानून पर चर्चा के लिए तीन दिसंबर को आमंत्रित किया है, जिसका जिक्र गृहमंत्री ने भी किया है।
किसान नेता सरकार से नये कृषि कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि नये कृषि कानून से किसानों के बजाय कॉरपोरेट को फायदा होगा।
किसान नेता किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद की गारंटी चाहते हैं और इसके लिए नया कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।
उनकी यह भी आशंका है कि नये कानून से राज्यों के एपीएमसी एक्ट के तहत संचालित मंडियां समाप्त हो जाएंगी, जिसके बाद उनको अपनी उपज बेचने में कठिनाई आ सकती है।
नये कानून में अनुबंध पर आधारित खेती के प्रावधानों को लेकर भी वे स्पष्टता चाहते हैं।