From Treason to Relief : पिछले एक सप्ताह में देश की अदालतों से दो महत्वपूर्ण खबरें आई हैं। पहली, शहला राशिद और हार्दिक पटेल पर से देशद्रोह के मुकदमे वापस ले लिए गए हैं। ये दोनों नेता कभी केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर विरोध के प्रतीक रहे हैं, लेकिन अब उनके मामलों में बदलाव हुआ है।
शहला राशिद और उनकी राजनीतिक यात्रा
शहला राशिद, जो पहले JNU की छात्र नेता रह चुकी हैं, हमेशा नरेंद्र मोदी की सरकार और उनकी नीतियों की कड़ी आलोचक रही हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में उनके रुख में बदलाव आया है, और अब वे केंद्र सरकार की नीतियों की सराहना करती हैं, खासकर जम्मू-कश्मीर से जुड़े फैसलों के संदर्भ में।
शहला ने 2016 में जेएनयू विवाद के बाद देशभर में ध्यान आकर्षित किया था, जब उन्होंने ‘देशविरोधी नारे’ लगाने वाले छात्रों की रिहाई के लिए आंदोलन किया था।
हालांकि, उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा 2019 में जम्मू-कश्मीर पर सरकार के निर्णयों के संदर्भ में दर्ज हुआ था। शहला ने भारतीय सेना पर कश्मीर में अत्याचार का आरोप लगाया था, जिसके कारण उन्हें आरोपों का सामना करना पड़ा।
हार्दिक पटेल की राजनीति में बदलाव
हार्दिक पटेल का नाम 2015 में पाटीदार आंदोलन के दौरान चर्चा में आया था, जब उन्होंने गुजरात की बीजेपी सरकार के खिलाफ आंदोलन किया था। लेकिन राजनीति में उनका रुख पूरी तरह बदल गया है।
हार्दिक अब उसी BJP पार्टी के सदस्य हैं, जिसके खिलाफ उन्होंने आंदोलन शुरू किया था। वे अब गुजरात के वीरगाम से बीजेपी के विधायक हैं। उनके खिलाफ भी देशद्रोह के आरोप थे, लेकिन अब इन आरोपों को वापस ले लिया गया है।
शहला राशिद पर देशद्रोह का आरोप
2019 में, जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था, तो शहला ने भारतीय सेना पर कश्मीर के लोगों के खिलाफ अत्याचार करने का आरोप लगाया था। उन्होंने Tweet कर भारतीय सेना द्वारा कश्मीर में किए गए कथित अत्याचारों का विवरण दिया था, जिसके बाद उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था।
सेना ने इन आरोपों को झूठा बताया था, और दिल्ली पुलिस ने आईपीसी की धारा 124A, 153A और 505 के तहत मामला दर्ज किया था।
देशद्रोह के मुकदमे का कानूनी परिप्रेक्ष्य
देशद्रोह के आरोपों के तहत IPC की धारा 124A पर मामला दर्ज होता है, जो अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत परिवर्तित हो चुका है। शहला और हार्दिक के मामलों में आरोपों को वापस लेने का निर्णय कई कारणों से महत्वपूर्ण है, खासकर जब यह सवाल उठता है कि राजनीति और कानून के बीच के रिश्ते कितने जटिल हो सकते हैं।