नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर संकट में बदल चुकी है। अस्पताल भर चुके हैं, ऑक्सीजन सप्लाई कम पड़ रही है, मरीज डॉक्टरों का इंतजार करते हुए दम तोड़ रहे हैं।
मृतकों की वास्तविक संख्या सरकारी आंकड़ों से बहुत ज्यादा है।
दुनिया के लगभग आधे नए केस भारत में मिल रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है, यह संख्या विचलित करती है, फिर भी वायरस के फैलाव की सही स्थिति नहीं दिखाई जा रही है।
डेटा छिपाने के लिए राज्यों पर केंद्र सरकार का दबाव है। इधर, वैज्ञानिक इस बात को लेकिर चिंतित हैं कि भारत में वायरस के नए स्वरूप अधिक घातक हो सकते हैं।
वैक्सीन का ज्यादा प्रतिरोध भी कर सकते हैं। नए मरीजों की तेज बढ़ोतरी के पीछे वायरस के नए स्वरूप की भूमिका हो सकती है।
बड़ी संख्या में मौतों की अनदेखी हो रही
देश के विभिन्न स्थानों पर श्मशान घाटों में लोगों से हुई बातचीत से पता लगता है कि मौतों की सही संख्या सरकारी आंकड़ों से बहुत ज्यादा है। कुल मौतों का आंकड़ा 2 लाख के करीब पहुंचने की सरकारी जानकारी संदिग्ध है।
विश्लेषकों का कहना है कि नेता और प्रशासक बड़ी संख्या में मौतों की अनदेखी करते हैं या गिनती कम कर रहे हैं। परिजन भी शर्म के मारे कोरोना से मौतों की जानकारी छिपाते हैं।
कभी न बंद होने वाले इंडस्ट्रियल प्लांट की तरह अहमदाबाद में एक बड़े विश्राम घाट में चौबीसों घंटे चिताएं जल रही हैं।
वहां काम करने वाले सुरेशभाई बताते हैं कि उन्होंने पहले कभी मौतों का ऐसा अंतहीन सिलसिला नहीं देखा, लेकिन वे मृतकों के परिजनों को जो पेपर स्लिप देते हैं, उसमें मृत्यु का कारण नहीं लिखते।
वे कहते हैं कि अधिकारियों ने ऐसा करने के निर्देश दिए हैं।
लापरवाही से बने ऐसे हालात
भारत की स्थिति पर गहराई से नजर रखने वाली मिशिगन यूनिवर्सिटी की महामारी विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जी का कहना है कि यह पूरी तरह से आंकड़ों का संहार है।
हमने जितने मॉडल बनाए हैं, उसके आधार पर हमारा विश्वास है कि भारत में बताई जा रही संख्या से दो से पांच गुना तक अधिक मौतें हुई हैं।
कुछ माह पहले भारत में स्थिति अच्छी थी। यह सोचकर कि बुरे दिन बीत गए, अधिकारियों और नागरिकों ने सावधानी बरतना छोड़ दिया।