नेपाल में हिंसा के बाद सरकार की सख्ती, राजशाही समर्थकों को चेतावनी सरकार ने दिया तीन अप्रैल तक का अल्टीमेटम, आंदोलन तेज होने की संभावना

नेपाल में फिर से राजशाही की मांग ने राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया है। सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव तेज हो गया है, जिससे देश के भविष्य पर नए सवाल उठ खड़े हुए हैं।

Smriti Mishra
2 Min Read

 Protests in nepal:नेपाल में पिछले कुछ हफ्तों से राजशाही समर्थकों का प्रदर्शन उग्र होता जा रहा है। काठमांडू, पोखरा और विराटनगर समेत कई शहरों में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं। उनकी मांग है कि नेपाल में फिर से राजशाही व्यवस्था लागू की जाए और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को सत्ता सौंपी जाए।

सरकार ने इन प्रदर्शनों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया है और चेतावनी दी है कि अगर 3 अप्रैल तक प्रदर्शन नहीं रुके तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। गृह मंत्रालय ने सभी जिलों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती बढ़ा दी है।

हिंसा और प्रशासन की प्रतिक्रिया

गत शुक्रवार को काठमांडू में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं। पुलिस ने आंसू गैस और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, जबकि प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी की। इस झड़प में दर्जनों लोग घायल हो गए, जिनमें से कुछ को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

नेपाल सरकार का कहना है कि राजशाही की वापसी असंवैधानिक है और लोकतंत्र के खिलाफ है। प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल (प्रचंड) ने कहा, “नेपाल एक लोकतांत्रिक गणराज्य है और इसे कोई भी ताकत बदल नहीं सकती।”

नेपाल में राजशाही की पृष्ठभूमि

नेपाल में 2008 तक राजशाही शासन था, लेकिन माओवादी आंदोलन और व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद देश को गणराज्य घोषित कर दिया गया। हालांकि, अब 16 साल बाद, एक बड़ा वर्ग फिर से राजशाही की वापसी की मांग कर रहा है।

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अगर यह प्रदर्शन जारी रहते हैं, तो नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि नेपाल के सामाजिक और आर्थिक हालात से भी जुड़ा हुआ है। बेरोजगारी और महंगाई से परेशान जनता को लगता है कि राजशाही के दौरान स्थितियां बेहतर थीं।

 

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