News FASTag Rule in India: भारत सरकार 1 मई 2025 से हाईवे टोल कलेक्शन के लिए नया GPS आधारित सिस्टम शुरू करने जा रही है, जो मौजूदा FASTag सिस्टम की जगह लेगा।
इस नए सिस्टम में टोल प्लाजा पर रुकने या लाइन में लगने की जरूरत नहीं होगी। आपकी गाड़ी जितनी दूरी हाईवे पर तय करेगी, उतना ही टोल आपके बैंक अकाउंट या डिजिटल वॉलेट से अपने आप कट जाएगा।
नया सिस्टम कैसे काम करेगा?
- हर गाड़ी में एक ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) लगाई जाएगी, जो ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) और भारत के NavIC
- सैटेलाइट सिस्टम की मदद से गाड़ी की लोकेशन और तय की गई दूरी को ट्रैक करेगी।
- टोल की राशि दूरी के आधार पर तय होगी और यह राशि OBU से जुड़े डिजिटल वॉलेट से ऑटोमैटिक कट जाएगी।
- शुरुआत में ट्रक, बस और खतरनाक सामान ले जाने वाली गाड़ियों पर यह सिस्टम लागू होगा, क्योंकि इनमें पहले से ही व्हीकल लोकेशन ट्रैकिंग (VLT) सिस्टम होता है। 2026-27 तक यह सभी प्राइवेट गाड़ियों पर लागू हो जाएगा।
FASTag से क्या अलग है?
FASTag 2016 में शुरू हुआ था, जिसमें गाड़ी के शीशे पर RFID टैग लगाया जाता है, जो टोल प्लाजा पर स्कैन होता है। लेकिन इसमें कई बार टैग स्कैन न होने, जाम या टैग के दुरुपयोग की समस्याएं आती थीं।
नया GPS सिस्टम टोल प्लाजा को पूरी तरह खत्म कर देगा। यह दूरी आधारित टोल वसूली को ज्यादा सटीक, पारदर्शी और तेज बनाएगा।
नए सिस्टम के फायदे
जितनी दूरी, उतना टोल: आप केवल उस दूरी का टोल देंगे, जितना आपने हाईवे पर सफर किया। हर दिन 20 किमी तक मुफ्त सफर की सुविधा भी मिलेगी।
जाम से छुटकारा: टोल प्लाजा नहीं होंगे, जिससे समय बचेगा और ट्रैफिक सुचारू रहेगा।
कम गड़बड़ी: ऑटोमैटिक सिस्टम से धोखाधड़ी या मानवीय गलतियों की संभावना कम होगी।
पर्यावरण के लिए बेहतर: गाड़ियां रुकेंगी नहीं, इससे ईंधन की बचत होगी और प्रदूषण घटेगा।
बेहतर अनुभव: तेज और सुगम सफर के साथ टोल भुगतान आसान होगा।
क्या GPS ट्रैकिंग से होगा निजता का उल्लंघन?
कई लोगों को चिंता है कि GPS ट्रैकिंग से उनकी निजता का उल्लंघन हो सकता है। सरकार ने इस पर सफाई दी है कि:
यह सिस्टम भारत के अपने NavIC सैटेलाइट सिस्टम पर काम करेगा, जो GPS से ज्यादा सटीक (3 मीटर तक) है और डेटा देश के भीतर ही रहेगा।
डेटा की गोपनीयता के लिए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 के तहत नियम लागू होंगे।
डेटा को अनाम (anonymized) रखने और यूजर की सहमति सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाएगा।
क्या रहेंगी चुनौतियां?
GPS सिग्नल में कभी-कभी गड़बड़ी हो सकती है, जैसे शहरी इलाकों या जंगलों में। NavIC इस समस्या को काफी हद तक कम करेगा, लेकिन सिस्टम को पूरी तरह विश्वसनीय बनाने के लिए और काम करना होगा।
पुरानी गाड़ियों में OBU लगवाने की जरूरत होगी, जिसका खर्च (लगभग 2500 रुपये) यूजर को देना पड़ सकता है।
कुछ लोग OBU बंद कर सकते हैं या इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए स्वचालित नंबर प्लेट रिकग्निशन (ANPR) कैमरे लगाए जाएंगे, लेकिन अभी यह बुनियादी ढांचा पूरी तरह तैयार नहीं है। अगर यूजर के डिजिटल वॉलेट में पैसे नहीं होंगे, तो टोल वसूलना चुनौती होगा।
कैसे होगी शुरुआत?
जून 2025 तक 2000 किमी हाईवे पर सिस्टम शुरू होगा, जिसमें ट्रक और बस शामिल होंगे।9 महीने में 10,000 किमी और 2027 तक 50,000 किमी हाईवे पर लागू होगा। OBU की उपलब्धता: OBU को सरकारी पोर्टल, फिनटेक कंपनियों और भविष्य में गाड़ी निर्माताओं द्वारा फैक्ट्री-फिटेड उपलब्ध कराया जाएगा।
शुरुआत में GNSS और FASTag दोनों सिस्टम साथ-साथ चलेंगे। टोल प्लाजा पर GNSS लेन होंगी, जहां OBU वाली गाड़ियां बिना रुके निकल सकेंगी। बिना OBU वाली गाड़ियों को GNSS लेन में दोगुना टोल देना होगा।
क्या करें गाड़ी मालिक?
- अपने वाहन में समय रहते OBU लगवाएं। सरकार इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल और सेंटर बनाएगी।
- नए सिस्टम की जानकारी के लिए सरकारी वेबसाइट्स और न्यूज चैनल्स पर नजर रखें।
- सुनिश्चित करें कि आपका डिजिटल वॉलेट हमेशा पर्याप्त बैलेंस के साथ तैयार रहे।
X पर कुछ यूजर्स ने इस सिस्टम को निगरानी का जरिया बताकर प्राइवेसी पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि रियल-टाइम ट्रैकिंग से सरकार हर गाड़ी की गतिविधि पर नजर रख सकती है। हालांकि, सरकार ने NavIC और डेटा प्रोटेक्शन नियमों के जरिए इन चिंताओं को दूर करने का भरोसा दिया है।