रांची: राज्य के सालाना बजट का समय आ गया है। झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के औपबंधिक कार्यक्रमानुसार तीन मार्च को आगामी वित्त वर्ष 2021-22 के लिये झारखण्ड सरकार विधानसभा में वार्षिक वित्तीय विवरण पेश करेगी।
चूंकि बजट अनुमानों के आकलन का संकलित सरकारी दस्तावेज है, इसलिए अनुमान जितने यथार्थ होंगे, जमीन पर विकास भी उतना ही यथार्थ दिखेगा।
आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला का कहना है कि विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की सफलता अन्य बातों के अलावा इस बात पर सबसे ज्यादा निर्भर करती है कि बजट में राजस्व प्राप्तियों का अनुमान कितना सही है।
झारखण्ड आर्थिक सर्वे 2019-20 के अनुसार सरकार की राजस्व प्राप्तियां बजट अनुमानों की तुलना में काफी कम रहीं हैं।
कोविड आपदा साल की बात को दरकिनार कर के सामान्य वित्त वर्षों पर गौर करेंगे, तो वित्त वर्ष 2014-2019 के वर्षों में सरकार की राजस्व प्राप्तियां अपने बजटीय अनुमान से 19 प्रतिशत कम रहीं हैं, जबकि देश के सभी राज्यों में औसत कमी 9 प्रतिशत की रही है।
झारखण्ड में बजट अनुमान और वास्तविक प्राप्तियों के बीच का अंतर 30 प्रतिशत से लेकर 38 प्रतिशत तक का रहा है।
राजस्व प्राप्तियों में कमी का सबसे ज्यादा खामियाज़ा तो विकास मद को ही भुगतना पड़ा है।
वित्त वर्ष 2019 का ही उदाहरण लें तो यह पता चलता है कि बजट अनुमान से कम राजस्व प्राप्ति के कारण पूंजीगत खर्चों में 22 प्रतिशत की कटौती हो गयी जबकि राजस्व गत खर्चों में 11 प्रतिशत की ही कटौती देखी गयी।
राजस्व प्राप्तियों में कमी विकास योजनाओं के वित्तपोषण को ज्यादा बाधित करती है, जिससे राज्य का विकास बाधित होता है।
सरकार को इस बात पर गंभीर मंथन करने की जरूरत है कि उसके बजटीय अनुमान कैसे ज्यादा से ज्यादा वास्तविक हों।
राज्य गठन के समय देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में झारखण्ड के सकल राज्य घरेलू उत्पादन की हिस्सेदारी 1.6 प्रतिशत की थी जो 19 वित्त वर्षों के लम्बे सफर के बाद यह भागीदारी 1.65 प्रतिशत तक ही बढ़ पायी।
इतने वर्षों में 0.05 प्रतिशत की बढ़त को क्या प्रभावशाली बढ़त माना जा सकता है, निश्चित रूप से नहीं झारखण्ड की ग्रोथ स्टोरी का यही सच है।