रांची: सामाजिक कुरीतियों को लेकर झारखंड की हेमंत सरकार (Hemant Sarkar) गंभीर है। सरकार ने बाल विवाह जैसी कुरीति के खिलाफ कमर कस ली है। इसकी रोकथाम के लिए बड़ा कदम उठाया है।
झारखंड सरकार (Government of Jharkhand) ने महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग, महिला पर्यवेक्षिका, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी, CO, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी, जिला कल्याण पदाधिकारी, उपायुक्त, प्रमंडलीय आयुक्त और प्रखंड विकास पदाधिकारी को बाल विवाह निषेध पदाधिकारी (Child Marriage Prohibition Officer) के रूप में नामित किया है।
पहले केवल बाल विकास पदाधिकारी ही इस कार्य में लगाए जाते थे।
समाज कल्याण निदेशक को बड़ी जिम्मेदारी
समाज कल्याण विभाग के निदेशक अब पूरे राज्य में बाल विवाह निषेध पदाधिकारी के रूप में बाल विवाह के खिलाफ कार्य करेंगे।
प्रमंडलीय आयुक्त का कार्यक्षेत्र प्रमंडल, उपायुक्त का जिलों, जिला कल्याण पदाधिकारी का जिलों में, अनुमंडल पदाधिकारी का अनुमंडल में, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी (Block Education Extension Officer) तथा प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) का कार्यक्षेत्र प्रखंडों में होगा। पंचायत सचिव अपनी पंचायतों में बाल विवाह निषेध पदाधिकारी के रूप में काम करेंगे। इनका दायरा पंचायतों तक होगा।
32.2 परसेंट होता है बाल विवाह
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2020-21 (National Family Health Survey 2020-21) की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में 18 वर्ष से कम आयु में विवाह करने वाली किशोरियों की संख्या 32.2 फीसदी है।
ग्रामीण इलाकों में 36.1 फीसदी तो वहीं शहरी क्षेत्रों में 19.4 फीसदी नाबालिग लड़कियों का बाल विवाह होता है। झारखंड में 15-19 वर्ष आयु वर्ग की 9.8 फीसदी लड़कियां समय से पहले मां बन जाती हैं।
देश में बाल विवाह के मामले में झारखंड का पोजिशन
बता दें कि झारखंड की गिनती देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में से एक है। 2011 की जनगणना (Census) के अनुसार, झारखंड में पिछले कुछ वर्षों में 3,38,064 बाल विवाह हुए हैं।
यह पूरे देश में बाल विवाह (Child Marriage) का 3 फीसदी है। बाल विवाह के मामले में राज्य का स्थान 11वां है।