High Court on Live-in Relation : अगर बीवी (Wife) है तो कोई भी मुस्लिम शख्स (Muslim) किसी और महिला के साथ लिव-इन रिलेशन (Live-in Relation) में रहने का दवा नहीं कर सकता।
इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ बेंच ने यह फैसला दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस्लाम इस तरह के संबंध की इजाजत नहीं देता।
यह आदेश न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति एके श्रीवास्तव प्रथम की खंडपीठ ने स्नेहा देवी और मोहम्मद शादाब खान द्वारा दायर एक रिट पर दिया।
याचिका में दोनों ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने और ‘लिव-इन रिलेशन’ में रहने के दौरान सुरक्षा मुहैया कराने का अनुरोध किया था।
इस मामले पर चल रही थी सुनवाई
सुनवाई के दौरान अदालत के सामने आया कि शादाब की शादी 2020 में फरीदा खातून से हुई जिससे उसे एक बच्ची भी है।
फरीदा इस समय अपने माता पिता के साथ मुंबई (Mumbai) में रह रही है। मामले के तथ्यों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 उन प्रकार के मामलों में सुरक्षा का अधिकार नहीं प्रदान करता जिनमें रूढ़ियां और प्रथायें भिन्न-भिन्न मत वाले व्यक्तियों को कोई कृत्य करने से मना करती हों। क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 13 रूढ़ियों और प्रथाओं को भी कानून मानता है।
High Court ने कहा कि चूंकि इस्लाम शादीशुदा मुसलमान व्यक्ति को ‘Live-in Relationship’ में रहने की इजाजत नहीं देता अतः याचिकाकर्ताओं को ‘लिव इन रिलेशन’ में रहने के दौरान सुरक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक नैतिकता और सामाजिक नैतिकता में सामंजस्य बनाये जाने की आवश्यकता है, ताकि समाज में शांति कायम रह सके और सामाजिक ताना बाना बना रहे।