नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक चेन्नई निवासी व्यक्ति ने एक याचिका दायर कर कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को कथित तौर पर धमकाने के मामले में अपने खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर रद्द करने की मांग की है।
यह मामला कर्नाटक हाईकोर्ट के उन न्यायाधीशों को कथित तौर पर धमकाने से जुड़ा है, जिन्होंने हिजाब के मुद्दे पर हाल ही में फैसला सुनाया था।
याचिकाकर्ता, रहमथुल्ला ने शीर्ष अदालत से कर्नाटक में उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने या फिर तमिलनाडु के मदुरै पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित करने का आग्रह किया।
उसने यह तर्क देते हुए यह अपील की है कि इसी मुद्दे के संबंध में एक और प्राथमिकी पहले ही दर्ज की जा चुकी है।
याचिका में कहा गया है, याचिकाकर्ता को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा और याचिकाकर्ता के लिए इस तरह की प्राथमिकी के संबंध में दो अलग-अलग राज्यों में विभिन्न अदालतों/पुलिस स्टेशनों से संपर्क करना असंभव होगा।
याचिका में कहा गया है कि दो अलग-अलग जांच एजेंसियों द्वारा समानांतर दोनों प्राथमिकी में जांच जारी रखना, उचित प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के समान होगा।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने याचिका पर तमिलनाडु और कर्नाटक सरकारों से जवाब मांगा।
हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के लिए राज्य सरकार को दी गई शक्ति को बरकरार रखा
याचिका में अर्नब रंजन गोस्वामी बनाम यूओआई का हवाला दिया गया है, जहां एक आरोपी के खिलाफ लगभग समान आरोपों के साथ कई प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
याचिकाकर्ता पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया गया है और परिणामस्वरूप, उसके खिलाफ 18 मार्च, 2022 को मदुरै में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
उसे 19 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और वह अभी तक हिरासत में है। उसके खिलाफ दूसरी प्राथमिकी कर्नाटक के विधान सौदा पुलिस स्टेशन में विभिन्न धाराओं के तहत आने वाले अपराधों के लिए दर्ज की गई थी।
याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से मामले में दूसरी प्राथमिकी रद्द करने का निर्देश देने की मांग करते हुए कहा, यह प्रस्तुत किया जाता है कि इस माननीय न्यायालय ने सतिंदर सिंह भसीन बनाम सरकार (एनसीटी दिल्ली) और अन्य मामलों में विचार किया है कि विभिन्न राज्यों में कई मामले होने पर यह माननीय न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकता है और आवश्यक राहत प्रदान कर सकता है।
इससे पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना था कि हिजाब इस्लाम की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और इसने शिक्षण संस्थान परिसरों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के लिए राज्य सरकार को दी गई शक्ति को बरकरार रखा