कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने उस व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है, जिसे पुलिस ने अपने मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देखने के आरोप में सड़क किनारे से गिरफ्तार किया था।
अदालत ने फैसला सुनाया कि सामग्री को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किए बिना या दूसरों को वितरित किए बिना किसी के फोन पर “निजी तौर पर” अश्लील तस्वीरें या वीडियो देखना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292 के तहत अश्लीलता फैलाने का अपराध नहीं माना जा सकता।
IPC की धारा 292 का महत्व
IPC की धारा 292 किसी भी अश्लील वस्तु या सामग्री की बिक्री, वितरण, प्रदर्शन या कब्जे पर रोक लगाती है। इस धारा के तहत सार्वजनिक तौर पर कामुकता प्रदर्शित करना या लोगों को अश्लील तस्वीरें या वीडियो भेजना अपराध है। पहली बार दोषी पाए जाने पर दो से पांच साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है।
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अश्लील सामग्री देखना किसी व्यक्ति की निजी पसंद है और कोर्ट उसकी निजता में दखल नहीं दे सकता।
अदालत का फैसला
अदालत ने फैसला सुनाया, “इस मामले में निर्णय लेने वाला प्रश्न यह है कि क्या कोई व्यक्ति अपने निजी समय में दूसरों को दिखाए बिना पोर्न वीडियो देखना अपराध की श्रेणी में आता है? अदालत यह घोषित नहीं कर सकती कि यह अपराध की श्रेणी में आता है, क्योंकि यह उसकी निजी पसंद है और इसमें हस्तक्षेप करना उसकी निजता में दखल के समान है।”
ऐसा कृत्य भी अपराध नहीं…
अदालत ने कहा, “इसी तरह IPC की धारा 292 के तहत ऐसा कृत्य भी अपराध नहीं है। यदि आरोपी ऐसी सामग्री प्रसारित करने या वितरित करने की कोशिश कर रहा है, या सार्वजनिक रूप से कोई अश्लील वीडियो या फोटो प्रदर्शित कर रहा है, तो IPC की धारा 292 के तहत अपराध आकर्षित होता है।”
अदालत ने एक व्यक्ति द्वारा उसके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए दायर क्रिमिनल मिसेलेनियस पेटीशन (Criminal Miscellaneous Petition) पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं।