नई दिल्ली: Supreme Court ने टिप्पणी की कि बिलकिस बानो मामले (Bilkis Bano Case) के दोषी, यह तर्क नहीं दे सकते कि सजा माफी के आदेश पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। एक दोषी की ओर से पेश वकील को जस्टिस बी.वी. नागरत्ना (Justice B.V. Nagaratna) और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा, आप यह नहीं कह सकते कि (सर्वोच्च न्यायालय के) पहले के आदेश के कारण छूट आदेश पर कोई सवाल नहीं उठा सकता।
वह आदेश (छूट की) प्रक्रिया का प्रारंभिक बिंदु था। वह शुरुआत थी, अंत नहीं। चुनौती अंत को दी गई है। पहले के एक फैसले में Supreme Court ने गुजरात सरकार को राज्य की 1992 की नीति में छूट के संदर्भ में दो महीने के भीतर समयपूर्व रिहाई के आवेदन पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया था।
पीठ ने कहा कि उसका पिछला आदेश इस हद तक सीमित था कि गुजरात सरकार (Government of Gujarat) दोषियों की सजा माफी की अर्जी पर फैसला करने के लिए उपयुक्त सरकार है और उसके बाद पारित सजा माफी आदेश प्रशासनिक आदेश की श्रेणी में आएगा।
एक दोषी की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने दलील दी कि 1992 की गुजरात छूट नीति के लिए सर्वसम्मत निर्णय की जरूरत नहीं थी, बल्कि केवल विभिन्न हितधारकों के विचारों का मिलान जरूरी था।
उन्होंने उचित ठहराया कि छूट आदेश की वैधता को केवल इस आधार पर रद्द नहीं कर सकते हैं, कि महाराष्ट्र में सत्र न्यायाधीश द्वारा प्रतिकूल राय दी गई थी। इसके पहले, शीर्ष अदालत ने दोषियों को चुनिंदा छूट नीति का लाभ देने के लिए गुजरात सरकार से सवाल कर कहा था कि तब सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर प्रत्येक कैदी को दिया जाना चाहिए।
बचाव में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू (Solicitor General SV Raju) ने कहा था कि 11 दोषी सुधार के अवसर के हकदार हैं और सजा माफी की मांग करने वाले उनके आवेदनों पर Supreme Court के पहले के फैसले के अनुसार विचार किया गया था।
Culprits की रिहाई के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई चल रही है, जिसमें बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका भी शामिल है।