पेरिस: भारत और फ्रांस ने घोषणा की है कि वे अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून से जुड़े हैं और हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच ‘‘नयी चुनौतियों’’ का सामना करने के लिए वे बहुपक्षीय निकायों और वार्ताओं मेंउइसे मजबूत करने के लिए समन्वय करेंगे।
विदेश मंत्री एस जयशंकर की रविवार को फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां-यवेस ले द्रायां के साथ द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भारत और फ्रांस ने समुद्री अर्थव्यवस्था पर द्विपक्षीय आदान-प्रदान बढ़ाने के लिए एक रूपरेखा पर हस्ताक्षर किए हैं।
इसके साथ ही दोनों देशों के बीच कानून के तहत समुद्र पर एक साझा दृष्टिकोण बनाने तथा सतत एवं मजबूत तटीय और जलमार्ग खाके पर सहयोग के लिए भी सहमति बनी है।
विदेश मंत्रालय ने रूपरेखा सार्वजनिक करते हुए कहा, ‘‘यह समुद्री सुरक्षा में भारत और फ्रांस के बीच साझेदारी की दिशा में अहम कदम है।’’
भारत और फ्रांस दुनिया भर में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के विकास और उन्हें मजबूत करने के लिए बातचीत करेंगे, खास तौर पर भविष्य की जैवविविधता वैश्विक रूपरेखा पर वार्ता के हिस्से के रूप में।
इस रूपरेखा के अनुसार, ‘‘भारत और फ्रांस अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून से बंधे हुए हैं और यह सभी समुद्रों तथा महासागरों पर भी लागू होता है।’’
इसमें कहा गया, ‘‘ इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून को मजबूत करने और नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए वे बहुपक्षीय निकायों और वार्ताओं में आपसी समन्वय बढ़ांएगे फिर चाहे वे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, समुद्री मामलों से संबंधित क्षेत्रीय समुद्री सम्मेलन और जहां वे दोनों पक्ष हैं, या यूएनसीएलओएस (समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) के तहत अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन पर अंतर सरकारी सम्मेलन हो…।’’
दक्षिण चीन सागर में आक्रामक बर्ताव कर रहे चीन ने 2016 में हेग में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के एक फैसले को खारिज कर दिया था। यह मामला दक्षिण चीन सागर में चीन के अधिकारों के दावों के खिलाफ फिलीपीन लाया गया था।
यह फैसला यूएनसीएलओएस के तहत गठित मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने दिया था।
भारत और फ्रांस पर्यावरण तथा तटीय एवं समुद्री जैव विविधता का सम्मान करते हुए नीली अर्थव्यवस्था को अपने-अपने समाज की प्रगति का वाहक बनाना चाहते हैं।
दोनों देशों का उद्देश्य वैज्ञानिक जानकारी और समुद्री संरक्षण में योगदान देना तथा यह सुनिश्चित करना है कि समुद्र स्वतंत्रता और व्यापार का स्थान बने जो कानून पर आधारित हो।