नई दिल्ली: हवाई जहाज की उड़ान के रास्ते में पक्षियों का आना बहुत ज्यादा खतरनाक होता है। यह खतरा हवाई अड्डों और एयर बेस पर बहुत ज्यादा होता है।
इससे निपनटा भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस समस्या के समाधान के लिए भारतीय वायुसेना में पहली बार एक भारतीय नस्ल के कुत्तों की तैनाती हुई है।
वायुसेना के आगरा एयरबेस में चार भारतीय नस्ल के मुडहोल कुत्तों को शामिल किया गया है। मुडहोल प्रजाति के कुत्ते भारत में कर्नाटक में बहुत पाए जाते हैं।
यह पहली बार है कि इस तरह से कुत्तों की भर्ती की गई है जिससे पक्षियों के विमानों से टकराव की घटना में कमी लाई जा सके।
ये कुत्ते रनवे पर आने वाले पक्षियों और जानवरों को दूर भगाने का काम करेंगे। इन कुत्तों में से दो नर और दो मादा हैं जबकि इनसके साथ एक 15 दिन का पिल्ला भी लाया गया है।
इन्हें कर्नाटक के मोडहुल स्थित कैनाइन रिसर्च एंड इनफॉर्मेशन सेंटर (सीआरआईसी) से लाया गया है। इसी जगह की वजह से इस प्रजाति को उनका नाम मिला है।
इन कुत्तों को पक्षियों को डराने के लिए खास तौर पर प्रशिक्षित किया जाएगा। मुडहोल कुत्ते पहले भी भारतीय सेना में शामिल किए जा चुके हैं।
पहले छह पिल्ले साल 2016 में मेरठ की आर्मी रेमाउंड एंड वर्टरनरी कॉर्प्स में शामिल किए गए थे जहां एक साल के प्रशिक्षण के बाद उन्हें जम्मू कश्मीर में तैनात किया गया था।
इसके बाद यह पूरा क्षेत्र ही इस देसी नस्ल के इन कुत्तों को पालने का इलाका बन गया है। अब इस इलाके में आम लोग भी इस नस्ल के कुत्ते खरीदने लगे हैं।
इससे पहले इसके लिए विदेशी कुत्तों का ही उपयोग किया जाता था। मुडहोल प्रजाति के कुत्ते बहुत ही चुस्त, तेज दिमाग वाले होते हैं जिससे वे बहुत तरह के काम करने के योग्य होते हैं।
सेना का कहना है कि मुडहोल वहां पहुंच सकने में सक्षम हैं जहां सैनिक नहीं पहुंच सकते। ये पतले होते हैं और बहुत ही तेजी यानि 60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकते हैं।
ये शिकारी कुत्ते होते हैं और इन्हें बम की पहचान करने अपराधिक घटना में पहचान करने जैसे काम के लिए उपयोग में लाया जाता है क्योंकि इनके सूंघने की क्षमता बहुत तेज होती है।
साल 2010 में जो मुडहोल पिल्ला दस हजार रुपये का आता था आज वह 14 हजार रुपये में आता है। जबकि जोड़ा 25 हजार तक में आता है। ये केवल सरकारी दर है।
बाजार में इनकी कीमत ज्यादा ही होती है। ये सात मानक रंगों में आते हैं।