नई दिल्ली: एक सर्वे के मुताबिक महज चार महीनों में अनुमानतया 36 करोड़ लीटर से ज्यादा काढ़ा पिया गया।
यह आंकड़ा अखिल भारतीय योग शिक्षक महासंघ और उनके साथ जुड़े आयुर्वेदिक डॉक्टरों के चार महीनों तक किए गए एक विशेष सर्वे से सामने आया है।
हालांकि इस दौरान यह भी पता चला कि लोगों ने काढ़ा इतना ज्यादा पीया कि तकरीबन तीस फीसदी लोगों को लीवर की समस्या समेत एसिडिटी और पाइल्स (बवासीर) जैसी समस्याएं हो गयीं।
कोरोना काल में आयुष मंत्रालय ने भारतीय पुरातन चिकित्सा पद्धति को न सिर्फ खूब प्रचारित प्रसारित किया, बल्कि उसके लाभ भी देखने को मिले।
भारतीय पुरातन चिकित्सा पद्धति का कोविड-19 में क्या असर हुआ, इसे जानने के लिए अखिल भारतीय योग शिक्षक महासंघ ने 10 लाख कोरोना प्रभावित मरीजों पर सर्वे किया।
यह सर्वे देश के अलग-अलग राज्यों में संघ की शाखाओं द्वारा किया गया।
योग महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंगेश त्रिवेदी ने बताया उनके सर्वे में देश के सभी राज्यों में 10 लाख मरीजों और उनके परिवार के चार अन्य सदस्यों यानी कि कुल मिलाकर 40 लाख लोगों से मई, जून, जुलाई और अगस्त महीने में इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों और काढ़े के संबंध में जानकारी एकत्रित की गई।
उन्होंने बताया कि इस दौरान पता चला कि हर घर में हर व्यक्ति प्रतिदिन आधे से पौन लीटर तक काढ़ा पी रहा था।
ऐसे में इन चार महीनों में यह आंकड़ा तकरीबन 36 करोड़ लीटर काढ़े के सेवन तक पहुंच गया।
यानी कि अलग अलग राज्यों के 40 लाख लोगों ने चार महीने में 36 करोड़ लीटर से ज्यादा काढ़ा पी डाला।
मंगेश त्रिवेदी कहते हैं चूंकि सर्वे में सिर्फ इतने लोगों को ही शामिल किया गया था, इसलिए आंकड़ें भी उसी लिहाज से हैं।
अगर देशव्यापी सर्वे हो, तो आंकड़ा और भी बहुत ज्यादा होगा।
जो अब तक के इतिहास में कभी इतना पेय पदार्थ नहीं इस्तेमाल किया गया। इस दौरान न सिर्फ काढ़ा बल्कि गिलोय का भी खूब इस्तेमाल हुआ।