बीजिंग: अमेरिका आदि देश कोरोना वायरस के वूहान लैब से लीक होने की बात कह रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिक शोध व निष्कर्ष में अब तक कुछ भी ऐसा सामने नहीं आया है।
हाल में सीएमजी ने एक भारतीय शोधकर्ता से भी बात की।
उन्होंने कुछ रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि वायरस के प्रयोगशाला से निकलने की संभावना न के बराबर है।
लेकिन कुछ देशों द्वारा बार-बार इस संबंध में आरोप लगाया जा रहा है।
इस बीच लॉस एंजिल्ट टाइम्स ने भी उस रिपोर्ट को खारिज किया है, जिसमें वायरस के प्रयोगशाला में तैयार होने का दावा किया गया है।
रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 वायरस लैब से लीक होने को लेकर कोई सबूत नहीं है। लेकिन वायरस के किसी जानवर से इंसान में फैलने की बात जरूर सामने आई है।
वहीं अन्य विशेषज्ञ भी कहते हैं कि अमेरिका जैसे राष्ट्रों को चीन पर आरोप लगाने से बचना चाहिए, क्योंकि अभी सबसे बड़ी प्राथमिकता अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाने की है।
इसके साथ ही वायरस के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की भी आवश्यकता है।
ऐसे में किसी एक देश के खिलाफ राजनीति से प्रेरित आरोप लगाए जाने से इस वैश्विक संकट से निपटना आसान नहीं होगा, क्योंकि चीन न केवल वैक्सीन का उत्पादन कर रहा है, बल्कि अन्य देशों को मदद भी दे रहा है।
उधर, भारतीय विशेषज्ञ ने बातचीत में कहा कि हमें इन बातों पर जोर देना चाहिए कि वैज्ञानिक चेतावनियों को किस तरह अमल में लाया जाए या रिसर्च डेटा को नीतियों में कैसे तब्दील किया जाए।
लेकिन कुछ देश इस बहस में उलझ रहे हैं कि वायरस लैब से निकला या प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ।
इतना ही नहीं, आज के दौर में प्रत्येक देश को अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है।
जबकि प्रसिद्ध जर्नल नेचर में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलाइना में 2015 में एक सिनथेंटिक कोरोना वायरस तैयार किया गया था।
उसका मकसद यह पता लगाना था कि कि मौजूदा दवाएं व टीके वायरस के खिलाफ कितने असरदार हैं।
लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उक्त शोध में पाया गया कि किसी भी दवा ने उस सिंथेटिक वायरस के खिलाफ असर नहीं दिखाया। इस तरह के रिसर्च के लिए अमेरिका ने आर्थिक मदद दी थी।
कहने का मतलब है कि वायरस के संबंध में अमेरिका में पहले से जानकारी मौजूद थी, पर वहां के नेता इन बातों को खारिज करते रहे हैं।
(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)