पोर्ट लुईस: भारत ने मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति अनिरुद्ध जगन्नाथ के निधन पर एक दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया है।
ऐसा कम होता है जब किसी देश के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष के निधन पर दूसरा देश शोक मनाए। अनिरुद्ध जगन्नाथ ऐसी शख्सियत थे जिनकी तारीफ इंदिरा गांधी भी खूब करती थीं।
यही कारण था कि इस देश की आजादी के दो साल बाद वह मॉरीशस पहुंचने वाली पहली भारतीय प्रधानमंत्री बनीं।
मार्च 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी मॉरीशस का दौरा किया था। भारत जब कोरोना की दूसरी लहर से पैदा हुई आपात स्थिति में अमेरिका से पहले इस छोटे से देश ने मदद भेजी थी।
मॉरीशस की भौगोलिक स्थिति हिंद महासागर में रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है।
यहां भारतीय मूल के लोगों के प्रेम ने इस देश को भारत के साथ मजबूती से जोड़े रखा है।
1968 में अंग्रेजों की दासता से आजादी मिलने के बाद से ही भारत में चाहें कोई भी सरकार रही हो, उसने मॉरीशस और वहां के लोगों की मदद ही की है।
साल 2013 में एशियन सिक्योरिटी मैगजीन में ऑस्ट्रेलिया के प्रोफेसर डेविड ब्रूस्टर और भारतीय नौसेना के पूर्व गुप्तचर रहे रंजीत राय ने ‘ऑपरेशन लाल डोरा: इंडियाज एबॉर्टेड मिलिट्री इंटरवेंशन इन मॉरीशस’ नाम से एक लेख में इस ऑपरेशन की पूरी पटकथा लिखी थी।
इस लेख में हिंद महासागर में भारतीय सैन्य योजना, रणनीतिक सोच, गुटनिरपेक्षता की नीति से बाहर निकलने की जानकारी दी गई थी।
हालांकि, इस ऑपरेशन को भारत सरकार की तरफ से आजतक आधिकारिक रूप से स्वीकारा नहीं गया।
यह घटना 1983 की है, जब मारीशस के तत्कालीन राष्ट्रपति अनिरुद्ध जगन्नाथ को सोवियत समर्थक वामपंथी कैबिनेट अधिकारी पॉल बेरेंजर के द्वारा तख्तापलट की चिंता सताने लगी थी।
चूंकि, आजादी के बाद से ही भारत की इस देश में खासी दिलचस्पी थी, इसलिए उस समय भारत की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने भारतीय हितों की रक्षा के लिए सैन्य हस्तक्षेप की योजना बनाई।
इसे ऑपरेशन लाल डोरा नाम दिया गया। इस ऑपरेशन के तहत मॉरीशस में भारतीय नौसेना के कई जंगी जहाजों को तैनात करने की योजना थी।
जिसमें कम से कम 6 डिस्ट्रॉयर, तेजी से कार्रवाई करने के लिए सी किंग और दूसरे हेलिकॉप्टर, सैन्य और नागरिक टैंकर तैनात किए जाने थे।
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने भी मिशन की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन इसकी भनक अनिरुद्ध जगन्नाथ के विरोधी पॉल बेरेंजर को मिल गई और उसने डरकर तख्तापलट करने का प्लान ही रद्द कर दिया।
जिसके बाद भारत ने भी अपनी सेना नहीं भेजी। मॉरीशस में 48 फीसदी जनसंख्या हिंदुओं की है।
ये लोग अंग्रेजों के समय भारत के अलग-अलग राज्यों से काम करने के लिए गिरमिटिया मजदूर बनकर वहां पहुंचे थे।
बाद में इन लोगों ने अपनी मेहनत और लगन से इस देश की कायापलट कर दी। इसके बाद कई साल तक एक भारतीय अधिकारी ने मॉरीशस के एनएसए का पद संभाला।