न्यूयॉर्क: एक प्रौद्योगिकी कंपनी ने एच1-बी वीजा पर भारतीयों को अमेरिका लाने के लिए फजीर्वाड़ा करने की बात को स्वीकार कर लिया है। एक संघीय अभियोजक ने इसकी पुष्टि की है।
कार्यकारी संघीय अभियोजक जेनिफर बी लोवी ने कहा कि क्लाउडजेन के कॉपोर्रेट प्रतिनिधि जोमोन चक्कलक्कल ने 28 मई को कंपनी की ओर से टेक्सास के ह्यूस्टन में एक संघीय अदालत के समक्ष इस बात को स्वीकारा।
अभियोजक के कार्यालय ने सोमवार को प्रसारित एक समाचार विज्ञप्ति में घोटाले का वर्णन एक चाल के रूप में किया।
इसमें कहा गया कि घोटाले के तहत एच1-बी वीजा प्राप्त करने के लिए क्लाउडजेन ने जाली अनुबंध को प्रस्तुत किया था, जिसमें दिखाया गया था कि तीसरी कंपनी के लिए उन्हें उन लोगों से काम था, जिन्हें वह लाना चाहती थी।
लेकिन एक बार जब सभी कर्मचारी अमेरिका आ गए, तो उनके लिए कोई नौकरी ही नहीं थी और उन्हें अमेरिका के कई अलग—अलग स्थानों में रखा गया था, हालांकि क्लाउडजेन इस दौरान उनके लिए काम ढूंढ़ने का प्रयास करते रहे।
अभियोजक के कार्यालय ने कहा, इस तरह से क्लाउडजेन जरूरतों के आधार पर विभिन्न नियोक्ताओं को तैयार वीजा के माध्यम से श्रमिकों की आपूर्ति कराते थे।
इससे उन्हें एक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिला। एक बार श्रमिकों को नया रोजगार प्राप्त हो गया, तब किसी नई थर्ड पार्टी कंपनी के द्वारा विदेशी कर्मचारियों के लिए आप्रवासन को लेकर कागजी कार्रवाई दायर की गई।
इसमें कहा गया कि क्लाउडजेन को कर्मचारियों के वेतन में से भी एक हिस्सा मिलता रहा, जो 2013 से 2020 तक लगभग 500,000 डॉलर था।
दक्षिणी टेक्सास संघीय अदालत के मुख्य न्यायाधीश ली रोसेन्थल को सितंबर में सजा सुनाई जानी है।
उन्हें दस लाख डॉलर तक का जुमार्ना देना पड़ सकता है और पांच साल तक प्रोबेशन में भी रहना पड़ सकता है।