नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की वित्त वर्ष 2021-22 के लिए मुद्रा और वित्त रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कोरोना से हुए नुकसान से उबरने में 15 साल लग सकते हैं।
हालांकि बैंक ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसकी अपनी नहीं बल्कि रिपोर्ट तैयार करने वाले बैंक के अंशधारकों की राय है। यह अंशधारक आरबीआई के आर्थिक एवं नीति शोध विभाग के सदस्य भी हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक अगर हम 2020-21 की वास्तविक वृद्धि दर -6.6 फीसदी, 2021-22 की 8.9 फीसदी, 2022-23 की अनुमानित वृद्धि दर 7.2 फीसदी व उसके बाद 7.5 फीसदी की विकास दर को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि भारत 2034-35 में ही कोविड-19 के कारण हुए नुकसानों से बाहर निकल पाएगा।
पूंजीगत खर्च पर सरकार के जोर, डिजिटलीकरण, ई-कॉमर्स स्टार्टअप, रिन्यूएबल एनर्जी जैसे क्षेत्रों में निवेश की बढ़ती संभावनाओं के कारण भारत की आर्थिक विकास दर पटरी पर लौट सकती है। इस रिपोर्ट में सार्वजनिक खर्च बढ़ाकर स्किल इंडिया मिशन के जरिए श्रम की गुणवत्ता सुधारने के सुझाव भी दिए गए हैं।
2022-23 के बाद से भारत की आर्थिक विकास दर के 7.5 फीसदी की वृद्धि से बढ़ने का अनुमान बहुत सटीक नहीं लगता है। आईएमएफ की रिपोर्ट में वित्त वर्ष 24 में भारत की अनुमानित विकास दर को 6।9 फीसदी रखा गया है जबकि आरबीआई की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में इसके 6।3 फीसदी रहने का अनुमान है।
इसके अलावा कई अर्थशास्त्रियों ने इसे 6 फीसदी पर रखा है। रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक गतिविधियां दो साल बाद भी मुश्किल से कोविड-19 के पहले वाले स्तर पर पहुंच पाई हैं। भारत की आर्थिक रिकवरी न केवल महामारी का प्रहार झेल रही है बल्कि इसके सामने कई संरचनात्मक चुनौतियां भी हैं।
इसके अलावा रूस एवं यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध ने भी आर्थिक पुनरुद्धार की रफ्तार को कमजोर कर दिया है। युद्ध के कारण जिंसों के दाम बढ़ने, वैश्विक आर्थिक परिदृश्य कमजोर होने और कठोर वैश्विक वित्तीय हालात ने भी परेशानियां खड़ी की हैं।