नई दिल्ली: राज्य सभा सभापति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने IPC , CRPC और इंडियन एविडेंस एक्ट (Indian Evidence Act) की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक-2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को विस्तृत विचार विमर्श के लिए गृह मामलों से विभाग से संबंधित संसद की स्टैंडिंग कमेटी (Standing Committee) को भेज दिया है।
कमेटी को इन तीनों विधेयकों पर विचार विमर्श कर तीन महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है।
लोक सभा के एक सांसद की सीट खाली
राज्य सभा सचिवालय द्वारा 18 अगस्त, शुक्रवार को देर रात जारी किए गए संसदीय बुलेटिन (parliamentary bulletin) में बताया गया कि, सदस्यों को सूचित किया जाता है कि राज्य सभा के सभापति ने लोक सभा स्पीकर (Lok Sabha Speaker) के परामर्श से 18 अगस्त 2023 को भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक-2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को गृह मामलों पर विभाग से संबंधित संसद की स्टैंडिंग कमेटी ( स्थायी समिति) को जांच कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट देने के लिए भेज दिया है।
आपको बता दें कि गृह मामलों पर विभाग से संबंधित संसद की स्टैंडिंग कमेटी राज्य सभा की है और भाजपा राज्य सभा सांसद बृजलाल इस कमेटी के अध्यक्ष हैं।
कमेटी में भाजपा के अलावा कांग्रेस, DMK, बीजू जनता दल,तृणमूल कांग्रेस,JDU, YSR कांग्रेस और शिवसेना के सांसद भी शामिल है।
कमेटी में चेयरपर्सन बृजलाल (Chairperson Brijlal) सहित राज्य सभा के 10 और लोक सभा के 20 सांसद शामिल हैं। लोक सभा के एक सांसद की सीट अभी इस कमेटी में खाली है।
राजद्रोह के प्रावधान को खत्म कर दिया गया
गौरतलब है कि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त,2023 को लोक सभा में 1860 में बने IPC,1898 में बने CRPC और 1872 में बने इंडियन एविडेंस एक्ट (Indian Evidence Act) को गुलामी की निशानी बताते हुए इन तीनों विधेयकों की जगह लेने वाले तीन नए विधेयकों – भारतीय न्याय संहिता विधेयक-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक-2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को पेश किया था।
शाह ने इन तीनों बिलों को सदन में पेश करते हुए कहा कि ब्रिटिशकाल में अंग्रेजों की संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का उद्देश्य दंड देना था, जबकि इन तीनों बिलों का उद्देश्य न्याय देना है।
उन्होंने कहा था कि इसमें राजद्रोह के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा का खास ध्यान रखा गया है, नाम बदल कर यौन शोषण करने वालो के खिलाफ सजा का प्रावधान किया गया है, दोषियों की संपत्ति कुर्की का प्रावधान किया गया है, सजा माफी को लेकर भी नियम बनाया गया है।
गहन विचार विमर्श के बाद ये तीनों बिल लाये गए
पुलिस, अदालत और वकीलों की जवाबदेही सुनिश्चित की गई है। उन्होंने भारतीय न्यायिक व्यवस्था और दंड व्यवस्था में आमूल चूल बदलाव का दावा करते हुए कहा था कि चार साल के गहन विचार विमर्श (Intensive Discussion) के बाद ये तीनों बिल लाये गए हैं। शाह ने इस पर और ज्यादा विचार विमर्श करने के लिए इन्हें स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव भी रखा था, जिसे लोक सभा ने स्वीकार कर लिया था।