झारखंड में यहां हुई अनोखी शादी, गाजे-बाजे के साथ सैकड़ों लोग बने बाराती, दूल्हा-दुल्हन का नहीं है कोई सानी…

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गढ़वा: मैराल थाना क्षेत्र के बाना गांव में एक अनोखी शादी हुई। सोमवार की शाम जब बारात निकली तो लगा जैसे किसी बड़े घराने के बेटे की बारात जा रही हो।

बैंड-बाजे के साथ सैकड़ों लोग बाराती बनकर नाचते-झूमते हुए जा रहे थे। डोली में दूल्हा की जगह पर मेढक राजा सज-संवरकर बैठे हुए थे।

पूरे रीति रिवाज से संपन्न कराए गए दूल्हा-दुल्हन बने मेढक-मेढकी की शादी के सैकड़ों लोग गवाह बने।

मेढक-मेढकी की हुई इस अनोखी शादी की चर्चा पूरे इलाके में हो रही है। बारात में शामिल लोगों ने ईश्वर से इस शादी को सफल बनाने की प्रार्थना भी की।

क्या है मामला

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स्थानीय लोगों के अनुसार, वर्षा और सुख-समृद्धि के लिए 1966 यानी 50 साल पहले से ही यहां मेढक-मेढकी की शादी कराई जा रही है।

मान्यता है कि इससे इंद्रदेव खुश होते हैं और अच्छी बारिश होती है। इसी के तहत इस बार भी यह अनोखी शादी हुई है। जहां दूल्हा और दुल्हन पक्ष के रूप में ग्रामीण दो भागों में बंटे हुए थे।

बता दें कि गांव के लोगों के लिए जीविका का साधन कृषि है। यहां का कृषि पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर होता है।

यही कारण है कि हर साल इस शादी के माध्यम से ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस मौके पर गांव के बड़ी संख्या में महिला-पुरुष मौजूद थे।

जमींदार ने सबसे पहले करवाई थी ऐसी शादी

ग्रामीणों के अनुसार अकाल से राहत पाने और गांव की सुख-समृद्धि के लिए सबसे पहले साल 1966 में गांव के जमींदार महेश्वरनाथ सिंह ने गांव में मेढक-मेढकी की शादी कराई थी।

बताया जाता है कि उस शादी के बाद गांव में जमकर वर्षा हुई थी तथा लोगों को अकाल से राहत मिली थी।

उसके बाद गांव में मेढक-मेढकी की शादी का प्रचलन शुरू हो गया। जो आज तक जारी है।

शादी को लेकर गांव के दुर्गा मंडप को आकर्षक रूप में सजाया गया था।

पंचायत के मुखिया विजय सिंह ने कहा कि उनके पूर्वजों द्वारा शुरू किया गया यह प्रयोग आज इंद्रदेव को मनाने का पवित्र माध्यम बन चुका है।

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