रांची: झारखंड हाईकोर्ट में जेएसएससी संशोधित नियामवली के खिलाफ दायर याचिका में सुनवाई बुधवार को होनी थी।
सुनवाई हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की बेंच के लिए तय थी लेकिन चीफ जस्टिस के कोर्ट होल्ड नहीं करने के कारण मामले की सुनवाई नहीं हुई।
सुनवाई की अगली तारीख भी तय नहीं की गयी है। सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता पी पटवारिया रख रहे हैं। इसके पूर्व की सुनवाई में संशोधित नियमावली को राज्य सरकार ने छात्र हित में बताया था।
हालांकि, सुनवाई की दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के प्रति नाराजगी व्यक्त की थी, जिसमें कहा गया था कि नियमावली असंवैधानिक है। कोर्ट ने बताया था कि नियमावली रही तो आने वाली बहालियां भी प्रभावित होगी।
क्या है दायर याचिका में
प्रार्थी रमेश हांसदा की ओर से दायर याचिका में संशोधित नियमावली को चुनौती दी गयी है। याचिका में कहा गया है कि नयी नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया गया है, जो संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। वैसे उम्मीदवार जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है।
नयी नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है।
उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना राजनीतिक फायदे के लिए है। राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है। उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग करते हैं।
ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बाहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किया जाने की मांग है।
चीफ जस्टिस के कोर्ट होल्ड नहीं होने से सुनवाई नहीं हुई
चीफ जस्टिस के कोर्ट होल्ड नहीं होने से छठी जेपीएससी मामले में भी सुनवाई नहीं हुई। मामले के प्रार्थी राहुल कुमार है। अधिवक्ता सुभाष रशिक सोरेन प्रार्थी पक्ष से दलील पेश कर रहे हैं।
पूर्व की सुनवाई में हाईकोर्ट ने प्रार्थी पक्ष से जानकारी मांगी थी कि प्रार्थी छठी जेपीएससी के इंटरव्यू में शामिल हुआ है तो परीक्षा को चुनौती कैसे दे सकता है।
इसमें प्रार्थी पक्ष के अधिवक्ता ने बताया था कि चार प्रार्थियों ने मामले में याचिका दायर की है, जिसमें से दो ने परीक्षा का बहिष्कार किया वहीं अन्य दो परीक्षा में शामिल हुए। मामला 2017 का है, जिसमें नियम विरुद्ध रिजल्ट जारी करने का जिक्र है।