रांची: झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) के न्यायाधीश जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी (Sanjay Kumar Dwivedi) की कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक आदेश में कहा है कि DNA Test कराने का आदेश स्वाभाविक रूप से पारित नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसा करना किसी व्यक्ति की निजता और शारीरिक स्वायत्तता (Privacy and Bodily Autonomy) पर कब्जा करने जैसा हो सकता है।
हाई कोर्ट POCSO Act के तहत Rape के आरोपित की अपनी और बच्चे की DNA जांच कराने की मांग को लेकर दाखिल याचिका को खारिज कर दिया।
सुनवाई के दौरान राज्य के वकील ने तर्क दिया कि प्रार्थी पर बच्ची से रेप का गंभीर आरोप हैं। हर मामले में DNA परीक्षण करना कोई नियम नहीं है।
DNA परीक्षण कराना बच्चे के विचार के लिए प्रासंगिक नहीं होगा
याचिकाकर्ता द्वारा IPC की धारा 376 के तहत किए गए अपराध के मामले में DNA परीक्षण के परिणाम का कोई फायदा नहीं होगा।
इसके साथ ही अदालत में यह भी तर्क दिया कि बलात्कार के मामले में चिकित्सा साक्ष्य हमेशा अंतिम नहीं होता है, लेकिन चिकित्सा साक्ष्य द्वितीयक साक्ष्य की भूमिका निभाता है।
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 376 के तहत मामले को तय करने के लिए, बच्चे का पितृत्व प्रासंगिक नहीं है क्योंकि मौखिक साक्ष्य पर इसका फैसला किया जा सकता है, इसलिए DNA परीक्षण कराना बच्चे के विचार के लिए प्रासंगिक नहीं होगा।