Preparation for Assembly Elections : लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में मिले झटके के बाद BJP अब आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर पूरी तरह मिशन मोड में है। BJP ने प्रचार और संगठनात्मक गतिविधियों को तेजी से बढ़ाया है ताकि वह चुनावी मैदान में मजबूत प्रतिस्पर्धा कर सके।
हालांकि, लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद प्रदेश भाजपा में अंदरूनी कलह बढ़ी है। इसका प्रभाव झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में न पड़े और झारखंड में BJP की सरकार बने इसके लिए पार्टी खास रणनीति पर काम कर रही है।
केंद्रीय नेतृत्व ने हर हाल में झारखंड में सत्ता में वापसी का टास्क प्रदेश भाजपा को दिया। इसकी झलक BJP के कार्यक्रम के रोड मैप में दिख रहा है।
झारखंड में चुनाव प्रभारी बनने के बाद पहली बार झारखंड दौरे पर आए केंद्रीय मंत्री और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता बिश्वा सरमा ने जिस तरह से बैठक की है उससे साफ लग रहा है कि BJP विधानसभा चुनाव को लेकर कितनी चिंतित है।
वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में BJP ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था और मुख्यमंत्री का चेहरा भी प्रोजेक्ट किया था लेकिन जनता ने इसे ठुकरा दिया। हालत यह बनी कि खुद मुख्यमंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र से हार गए। पिछले चुनाव में भाजपा 65 पार का नारा के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी लेकिन फेल हो गई और महज 25 सीटों पर सिमट गई थी।
बीते लोकसभा चुनाव में पार्टी ने देशभर में 400 पार के साथ झारखंड की सभी 14 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था। इसमें भी भाजपा को झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों में झटका लगा है।
हालांकि, BJP नेताओं का मानना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान झारखंड के करीब 50 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रहना शुभ संकेत है और इसी बल पर सत्ता परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है।
इन सब चुनावी अनुभवों के आधार पर भाजपा ने फिलहाल मुख्यमंत्री का चेहरा की घोषणा नहीं करने का फैसला किया है ताकि पार्टी के अंदर अंदरूनी कलह को हवा देने से रोका जाए।
नाम न छपने की शर्त पर BJP के एक नेता का कहना है कि बाबूलाल के नेतृत्व में जब चुनाव लड़ने की घोषणा हुई है तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री का चेहरा भी बाबूलाल को रखने का पार्टी जरूर सोचेगी। इसके अलावा इस बार सीटों के लक्ष्य को सार्वजनिक भी नहीं करने का निर्णय लिया गया है।
BJP ने बदली रणनीति
लोकसभा चुनाव में ट्राइबल सीटों पर हार का सामना करने के बाद भाजपा ने रणनीति में बदलाव करना शुरू कर दिया है। आगामी विधानसभा चुनाव में BJP की नजर OBC वोटबैंक को साधने पर है।
इसके अलावा सवर्ण Vote जो BJP की पारंपरिक रही है, वो नाराज न हो इस पर ध्यान दिया जा रहा है। यही वजह है कि OBC का बड़ा चेहरा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री जो सवर्ण हैं हिमंता बिश्वा सरमा को झारखंड की जिम्मेदारी दी गई है।
इस साल के अंत में झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव को जीतना शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिश्व सरमा के लिए कठिन चुनौती है।
वर्तमान राजनीतिक हालात और लोकसभा चुनाव परिणाम स्पष्ट संकेत दे रहा है कि BJP का न केवल ट्राइबल वोट बैंक में कमी आई है, बल्कि सामान्य सीटों पर भी जनाधार में कमी आई है। वर्ष 2019 की तुलना में 2024 की परिस्थिति और भी खराब है। इसके पीछे कई वजह हैं। संगठन के अंदर अंदरूनी कलह जो टॉप-टू-बॉटम तक देखी जा रही है। इसे दूर करना दोनों नेताओं के लिए बड़ी चुनौती है।
झारखंड सरकार पूरे कर रही चुनावी वादे
वर्ष 2019 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जो प्रमुख वादे किए थे, उनमें कुछ तो हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री रहते ही पूरे हो गए थे लेकिन बचे काम मुख्यमंत्री बनने के बाद चम्पाई सोरेन पूरे करने में लगे हुए हैं।
राज्य सरकार ने झारखंड में सबसे बड़ा काम यह किया कि सरकारी कर्मचारियों की बंद हो चुकी पेंशन स्कीम शुरू कर दी। गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना (Guruji Student Credit Card Scheme) भी शुरू कर दी गई।
अबुआ आवास का लाभ 20 लाख लोगों को, उपभोक्ताओं को 200 यूनिट फ्री बिजली, झारखंड में हर महिला को अब 1000, वृद्धावस्था पेंशन की उम्र सरकार ने घटाई सहित कई योजनाओं को पूरा करने में लगी है।
कास्ट सर्वे चम्पाई सोरेन का मास्टर स्ट्रोक
बिहार में जातीय सर्वेक्षण का काम पूरा हो जाने के बाद झारखंड सरकार भी इसके लिए काफी दिनों से सोच रही थी। अब तो मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन (Champai Soren) ने बाकायदा इसकी मंजूरी दे दी है यानी बिहार के बाद झारखंड दूसरा राज्य होगा, जहां जाति सर्वेक्षण का काम किया जाएगा।