रामगढ़: रामगढ़ जिले में गुरुवार को वट सावित्री पूजा धूमधाम से मनाई गई। इस मौके पर सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखा।
सुबह से ही बरगद के वृक्ष के नीचे 16 श्रृंगार कर महिलाएं उपस्थित हुई। वहां उन्होंने वट वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधा।
साथ ही अपने परिवार की सलामती की कामना भी की। इस मौके पर व्रतियों ने कोरोना जैसी महामारी को दूर करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।
हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री व्रत का अनुष्ठान होता है। पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत किया जाता है।
पति के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से लड़ी थी सावित्री
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से लड़ी थी।
उन्होंने यह संकल्प लिया था कि वह अपने पति की प्राण हर कीमत पर बचाएंगी। देवी सावित्री का विवाह अल्पायु सत्यवान से हुआ था।
उस वक्त उनके माता-पिता ने संबंध खत्म करने के लिए काफी प्रयास किया। परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी।
जिनके जिद्द के आगे राजा को झुकना पड़ा। जब सत्यवान की मृत्यु का दिन निकट आने लगा तब सावित्री अधीर होने लगीं।
उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि के कहने पर पितरों का पूजन किया।
प्रत्येक दिन की तरह सत्यवान भोजन बनाने के लिए जंगल में लकड़ियां काटने जाने लगे, तो सावित्री उनके साथ गईं। वह सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था।
सत्यवान लकड़ी काटने पेड़ पर चढ़े, लेकिन सिर चकराने की वजह से नीचे उतर आये। सावित्री पति का सिर अपनी गोद में रखकर उन्हें सहलाने लगीं।
तभी यमराज आते दिखे जो सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं।
उन्होंने बहुत मना किया परंतु सावित्री ने कहा, जहां मेरे पतिदेव जाते हैं, वहां मुझे जाना ही चाहिये।
बार-बार मना करने के बाद भी सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देखकर यम ने एक-एक करके वरदान में सावित्री के अन्धे सास-ससुर को आंखें दीं, उनका खोया हुआ राज्य दिया और सावित्री को लौटने के लिए कहा।
वह लौटती कैसे? सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे।
यमराज ने फिर कहा कि सत्यवान् को छोडकर चाहे जो मांगना चाहे मांग सकती हो, इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्यवती का वरदान मांगा।
यम ने बिना विचारे प्रसन्न होकर तथास्तु बोल दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है।
यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं, जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।
सत्यवान जीवित हो गए, माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई और उनका राज्य भी वापस मिल गया।
वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाले के वैवाहिक जीवन के सभी संकट टल जाते हैं।