Former Raj Bhavan employee reaches Supreme Court: पश्चिम बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस के खिलाफ यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) का आरोप लगाने वाली पूर्व कर्मचारी ने कार्रवाई की मांग कर Supreme Court का दरवाजा खटखटाया है।
याचिका में महिला ने राज्यपाल को आपराधिक मामलों में दी गई छूट को चुनौती दी है। याचिका में सवाल उठाया गया है कि राज्यपाल को दी गई संवैधानिक छूट उनके जीवन के मौलिक अधिकार पर कैसे रोक लगा सकती है? राजभवन ने घटनाक्रम पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इस मामले की सुनवाई अगले सप्ताह की शुरुआत में होने की संभावना है।
राजभवन की एक पूर्व कर्मचारी ने राज्यपाल बोस पर दो बार छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया था। महिला की शिकायत के बाद कोलकाता पुलिस ने 15 मई को राजभवन के तीन कर्मचारियों के खिलाफ FIR दर्ज की थी।
24 मई को हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश में तीनों कर्मचारियों को अग्रिम जमानत दे दी। यह विवाद तब और गहरा गया,जब राज्यपाल बोस ने DOPT को पत्र लिखकर कोलकाता पुलिस आयुक्त विनीत गोयल और DCP (मध्य) इंदिरा मुखर्जी को हटाने के निर्देश दिए थे। ये दोनों अधिकारी छेड़छाड़ के आरोप की जांच कर रही विशेष जांच टीम (SIT) का नेतृत्व कर रही हैं। याचिका में कई सवाल भी पूछे गए हैं।
पहला सवाल यह है कि यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ राज्यपाल के कर्तव्यों का हिस्सा कैसे बन सकते हैं? क्या न्याय पाने के लिए आरोपी के पद छोड़ने का इंतजार करना होगा।
याचिका में दावा किया गया है कि अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल के खिलाफ आपराधिक मामलों में जांच के लिए पूछताछ की जा सकती है। जरूरत पड़ने पर उनका बयान भी दर्ज हो सकता है। इस बीच राजभवन की ओर घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया नहीं आई है।
राजभवन के अधिकारी ने कहा कि उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में किसी मामले के दायर करने की कोई जानकारी नहीं है। महिला ने भी घटनाक्रम पर कुछ नहीं कहने का फैसला किया।