Jharkhand High Court’s historic decision: झारखंड हाईकोर्ट ने बोकारो जिला के महिला बाल विकास कार्यालय में वर्ष 2008 से संविदा आधार पर कार्यरत दो कर्मियों, कमल रजवार और गीता कुमारी, को नियमित करने का महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है।
जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने दोनों की याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड सरकार के महिला कल्याण एवं महिला बाल विकास विभाग के सचिव को 8 सप्ताह के भीतर इन्हें नियमित करने का निर्देश दिया है।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार (2006) के ऐतिहासिक निर्णय के आधार पर लिया गया है।
कमल रजवार और गीता कुमारी वर्ष 2008 से बोकारो जिला के महिला बाल विकास कार्यालय में असिस्टेंट अकाउंटेंट के पद पर संविदा आधार पर कार्यरत हैं। दोनों ने अपनी सेवाओं को नियमित करने की मांग को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता राधा कृष्ण गुप्ता और पिंकी साव ने कोर्ट में तर्क दिया कि 16 वर्षों की निरंतर सेवा के बावजूद उनकी सेवाएं नियमित नहीं की गईं, जो सुप्रीम कोर्ट के उमा देवी मामले में दिए गए दिशानिर्देशों का उल्लंघन है।
उमा देवी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि यदि कोई संविदा कर्मी लंबे समय से कार्यरत है और उनकी नियुक्ति में कोई अनियमितता नहीं है, तो उनकी सेवाओं को नियमित किया जाना चाहिए।
अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि कमल और गीता की नियुक्ति वैध प्रक्रिया के तहत हुई थी और वे लंबे समय से विभाग में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
कोर्ट का फैसला
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने कमल रजवार और गीता कुमारी के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने आदेश दिया कि:
झारखंड सरकार के महिला कल्याण एवं महिला बाल विकास विभाग के सचिव 8 सप्ताह के भीतर दोनों याचिकाकर्ताओं की सेवाओं को नियमित करें।
यह निर्णय उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार (2006) के सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुरूप है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं की लंबी सेवा और कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें नियमित कर्मचारी का दर्जा देना न्यायसंगत है।